जातकक जन्मोत्सवक अवसर पर पिताक द्वारा पमरियाक दल नचैत गाबैत आबैत अछि ।
एहि अवसर मे एक विशेष प्रकार के गीत गाओल जैत अइछ जकरा पमारा कहल जाइछ ।
ई भेल ‘परम आर ‘ अत्यंत गतिशील अर्थात द्रुतगति सँ गाओल जाय वला गीत । एकर गायक परमारिक = पमरिआ थिक ।
पमरिया सब नाचि- नाचि , उछलि- उछलि ताली दैत गबैत सब के मन मोहि लैछ । कखनो तीन गोटा बैसि कए गान प्रारम्भ करैछ । पहिल आधा पद कहैछ, दोसर अगिला आधा पद पुरबैछ। और तेसर पदक अन्तिम शब्द दोहराए दैछ । अपन किछु नै कहैछ । तेँ लोकमें तेहेन हँ हँ भरनिहार कें ‘ पमरियाक तेसर कहल जाइछ जे एकटा प्रसिद्ध कहबी बनि गेल अछि।
एक पमरिया पैजामा, कुरता पहिरने डाँर म रंगीन गमछा बन्हने डुग्गी बजबैत अछि दोसर घघरा, कंचुक, मुरेठाक संग हाथ ओ पैर म घुंघरू बन्हने रहैछ आ तेसर चुड़की सँ तेल चुआबैत पैजामा कमीज पहिरने काजर कएने ढोलकी बजबैछ । ई सब विनु पुछनहि आंगना पहुँचि नाचि लगैछ । दर्शकक भीड़ लागि जाइछ। पमारा के अतिरिक्त ई सब भजन, सोहर, रामजन्मक ओ कृष्णजनमक वर्णन, चौमासा, बरहमासा, फाग, चैतावर आदि गाबैत अछि। मामा-भागनिक झगड़ा, सौस- पूतौहुक अनबन, दूल्हा – दुलहिनक बतकटी आदिक अभिनय गाबि-गाबि करैछ। बच्चा के कोरां ले खेलबे लगैछ। अ ता धरि आपस नै करैछ जा धरि ओकर मांगक पूर्ति नै होइछ। लोग खुशि स ओकरा साड़ी , साया , धोती , नगद दैछ। एहि सँ ओकर गुजर चलैछ। पमरिया सब गाम बाटने रहैछ – ई गाम फल्लाक त ई गाम फल्लाक।
खगता पर गाम बेचियो दैछ। प्रत्येक गाम मे ओकर समदियाक रहैत छैक- चमानि , नोकर आदि जे जन्मक सूचना दए दैत छैक। मिथिलाभाषा कोष मे पमरियाक अर्थ देल अछि – पमारा गओनिहार। बदरीनाथ झाक मैथली संस्कृत कोश मे एकर अर्थ अछि- परमारकः। वर्णरत्नाकर मे त एकर उल्लेख नहि भेटल अछि, मुदा डॉ° कांचीनाथ झा ‘किरण’ वर्णरत्नाकरक काव्यशास्त्रीयअध्यन मे मिथिलाक जातिक प्रसंग पमरियाक उल्लेख कएने छथि। मैथिलीक प्राचीन साहित्य राम – कृष्णक जन्मोत्सव मे एकर उल्लेख के अनुपयुक्त रहबाक कारण पमरिया के चर्चा नहि अछि। मुदा आधुनिक युग मे बदरीनाथ झा अपन एकावली परिणय मे पमरिया के चर्चा कएने छथि।
संस्कृत साहित्यो मे एकठाम एकर प्रसंग आएल अछि । कविशेरेजीक गुणेश्वरचरिचम्पू काव्य मे धर्मकर्मावतार बाबू गुणेश्वर सिंहक शम्भकरपुर जन्मक अवसर पर “सतालोत्तालोच्छलत्पारमारिकप्रकरमं, मंगल मयमिव सुखमयमिवास्थानमण्डपमाधिष्ठाय चिराय वितायमानमं तनुजजनुर्महोत्सव मद्राक्षित”। अर्थात ताली दैत ऊँचकए उछलैत पमरियाक दलकेँ मंगलमय जेँका सुखमय ओसराक चबूतरा पर बैसि चिरकाल सँ चलैत अपन पुत्रक जन्मोत्सव मे देखलनि। पमरियाक वाक्यचातुर्य, कलाकौशल ओ नाच- गान – वाद्यक रमणीयता एहि मांगलिक अवसरक लेल परम उपयोगी होइछ। एहिजातिक प्रवर्तन मिथिला मे चौदहम शताब्दी मे होएब संगत प्रतीत होइछ। यवन आक्रमणकारी अपना संग हजारक हजार यवन के आनने छल जे लूटी पाटी के गुजर करैत छल।
ओकर नै वास नै वृति छलै। गामे गाम हुलैत भय पहुचाने हुनकर काज छलै। तकरा सामाजिक बनएबाक लेल राजा द्वारा ओकरा गामे गाम बसाओल गेलैक आवृति (जीविका) देल गेलैक जकरा मे जे गुण छमता छलैक से ताहि वृति मे चल गेल। आ कर्मक आधार पर ओकर जाती बन गेलै – (1) दर्जी, (2) जोलहा, (3) कुजरा, (4) धुनियाँ, (5) पमरिया, (6) मुसलमानक हजाम, (7) फकीर आदि। तहिया सँ पमरिया नाचि – गाबि रहल अछि ओ समाज मे सामंजस्य स्थापित करैत हर्षक धारा बहाए रहल अछि। ओना युगपरिवर्तनक कर्म मे ओ सब आब आन वृति म जाए रहल अछि आ तेँ एकर कलाक ह्रास भ’ रहल अछि ।
PC: Kapil Prajapati (youtube channel)