पातरी – मिथिला संस्कृति में विशेष स्थान

 

 

पातरी – मिथिला का पवित्र व्यंजन

मिथिला के आराध्य जगत में पातरी एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है। यह भगवती (माँ दुर्गा, माँ काली, या अन्य देवी रूपों) को समर्पित एक पवित्र व्यंजन है, जिसे विशेष रूप से पूजा और धार्मिक अनुष्ठानों के दौरान बनाया जाता है।

पातरी का महत्व:

धार्मिक परंपरा:

  • पातरी का उपयोग मुख्य रूप से माँ भगवती की पूजा में किया जाता है।
  • नवरात्रि, दुर्गा पूजा, और अन्य व्रत-त्योहारों में इसे विशेष रूप से बनाया जाता है।

भोग एवं प्रसाद:

  • इसे देवी को भोग के रूप में चढ़ाया जाता है और बाद में प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है।
  • यह शुद्धता और सात्त्विकता का प्रतीक माना जाता है।

मिथिला के पारंपरिक व्यंजन में स्थान:

  • यह व्यंजन चावल के आटे (अरवा चावल) से तैयार किया जाता है और इसमें गुड़/चीनी, नारियल, व अन्य शुद्ध सामग्री का उपयोग किया जाता है।
  • इसकी बनावट हल्की और स्वादिष्ट होती है, जो स्वास्थ्य के लिए भी लाभदायक होती है।

त्योहारों में उपयोग:

छठ पूजा, हरितालिका तीज, और जिउतिया जैसे पर्वों में पातरी बनाने की परंपरा है।

पातरी बनाने की विधि (संक्षिप्त में)

  1. चावल के आटे को पानी में गूंधकर पतली परत बनाई जाती है।
  2. इसमें नारियल, गुड़, या खीर जैसा मिश्रण भरा जाता है।
  3. इसे केले के पत्ते में लपेटकर भाप में पकाया जाता है।

मिथिला संस्कृति में अन्य पारंपरिक व्यंजन:

  • दही-चूड़ा (मकर संक्रांति में खास)
  • लईया व ठेकुआ (छठ महापर्व के लिए)
  • तरुआ और पिठार (सावन और त्योहारों में खास)

मिथिला की परंपराएं और व्यंजन हमारी सांस्कृतिक धरोहर का अभिन्न हिस्सा हैं।

 

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