सारंग गीत

November 16, 2022 मिथिला डा. शैलेंद्र मोहन झा
सारंग गीत

महुअक लेल कोबर स गोसाउनी घर जयबा कालक गीत

मिथिला मे सारंग गीत विशेष अवसर पर गाओल जाइत अछि । कंगुरिया लागल बर -कनियाँ के महुअक लेल कोबर घर सँ गोसाउनि घर जयबाकाल ई सारंग गीत गाओल जाइत अछि । कंगुरिया लागब सँ मोन पड़ल जे हम अपन संगी -संगिनी के विवाह दिनक स्मृति लेल कंगुरिया दिवसक शुभकामना दैत छी ।मिथिला मे कंगुरिया लागब विवाह क पर्यायवाची अछि । कंगुरिया शब्द सुनतहिं विवाह क मधुर स्मरण आ मोन पुलकित भs जाइत अछि ।

चलह विदुर गृह जाऊ। हे ऊधो ।
हरखित फिरथि विदुर के घरनी
मोरा गृह पाहुन आइ । हे ऊधो चलह ।

व्याकुल भेली विदुर के घरनी
की लय हरी के जिमाउ । हे ऊधो चलह ।

कन्नाक साग चन्नाकेर रोटी
ताहि लय हरि के जिमाउ । हे ऊधो चलह ।

सारंग गीत

लय चोर चीर कदम चढ़ि बैसल
कृष्ण बजाबथि बाँसुरी बन मे करत ।
मांगथी चीर देहु कृष्ण हो
हम जल माँजझ उघारी ।
जँ हम चीर देब हे राधा
जल सँ तो होउ न्यारी । बन मे करत ।
जँ हम जल स न्यारी होयब
ग्वाल हँसत दय ताली
बन में करत विहार बिहारी

सारंग गीत दीर्घकायिक नहि होइत अछि । मिथिला मे कोबर घर सँ गोसाउनि घरक बीच अँगना आबैत अछि ।कच्छप गति सँ डेग बढ़बैत बर , कंगुरिया लागल कनियाँ के मन्द स्पर्श सँ संग चलबाक संकेत करैत रहैत छथि आ गीतगाइन सारंग गीत गाबैत छथि ।

उपर्युक्त पहिल सारंग गीतक प्रसंग मनोहर अछि ।विदुर के घर पाहुन आबि रहल छनि । मैथिल लेल पाहुनक आगमन कोनो उत्सव सदृश्य होइत अछि । उत्साह -उल्लास सँ परिपूर्ण । ताहू मे पाहुन रुप मे कृष्ण । उद्धव के समाचार सुनतहिं विदुरक घरनि हर्षित भs जाइत छथि ।मुदा , ई हर्ष क्षणिक अछि । घरनी अपन घरक स्थिति के स्मरण करैत व्याकुल भs जाइत छथि ।

एहि सारंग गीत मे एकटा पाँती अछि , ” कन्नाक साग , चन्नाक रोटी ” । यैह थीक मैथिलक परिवार ।मोन पड़ैत अछि , पं. बच्चा झा ( नवानी ) के कहबी , ” अखन हमर बाड़ी मे बहुत रास साग अछि “ , ई कही ओ दरभंगा राजक चाकरी अस्वीकार कय देने रहथि । मिथिला समाजक यैह विशेषता अछि जे विष्णुतुल्य पाहुन के अबितहिं सगर गाम ओहि घरवारी के सहयोग करय लेल आतुर भs जाइत छथि ।एहिने सहयोग भाव हम अपन गाम -घर मे देखने छी जखन सभागाछी सँ बरियाती आबैत छल । कन्नाक साग , कन्ना फूलक तरुआ अधिकांश मैथिल गिरहथ लग रहैत छलनि , पाहुनक स्वागत लेल । विदुर के घरनी लग यैह किमरिफ छनि । तीमन लेल कन्ना के साग आ बदामक चिक्कस के रोटी । मोन मे कनिको ग्लानि नहि , एहि दिव्य भोजन सँ विष्णुतुल्य कृष्ण के जिमाओल गेल । एहि सारंग गीत मे मिथिला के आर्थिक पराभव आ हार्दिक हर्षभाव के अद्भुत समन्वय अछि , तैं मैथिल निर्धन भs सकैत छथि, दरिद्र किमपि नहिं । एहिठाम ज्ञातब्य अछि जे पहिल उद्धृत सारंग गीत क प्रसंग अछि , गोसाउनि घर जयबाक कालक गीत , जकर शब्द भक्तिपरक अछि । हरि भक्ति आ ताहि मे मिथिला क परिवारक चित्रण । मोनक उद्भाव आ यथार्थ क पराभव एकाकार भs गेल अछि ।

दोसर उद्धृत सारंग गीतक सामाजिक संदर्भ भिन्न अछि ।गोसाउनि घर सँ कोबर घर जयबाक प्रसंग ।मिथिला मे कोबर लिखल जाइत अछि ।कृष्ण -लीला के दृश्य । कृष्ण द्वारा गोपी के चिर हरण क गाथा ।कदंब गाछ, यमुना तट , सहित काउछ -माछ ; हास – परिहास संग संतानोत्पत्ति क संकेत ( fertility cult ) , श्रृंगार सँ आप्लावित कोबर लेखन आ तदनुरुप सारंग गीत । एहि सारंग गीतक शब्द बदलि गेल , भाव-प्रसंग बदलि गेल , ओएह कृष्ण आब बिहारी बनि नव कुंज भवन मे विहार करय लगलाह ।यैह थीक मैथिली गीतक भाव -प्रणवता ।विषयानुकूल गीत आ तकर शब्द -चित्रण । कंगुरिया धयने वर -वधु हरिक अभिनन्दन कय कोबर घर जा रहल छथि हुलसित मोन सँ , सोद्देश्य डेग भरैत , रास – लीला सँ परिपूर्ण परिवेश मे ।सारंग शब्द अपन समस्त शब्दार्थ संग उपस्थित भs जाइत छथि, सारंग नयनि, सारंग वरणी, सारंग लs चललि सारंग के….। मिथिला क सारंग गीतक ई दोसर रुप ओतबे मनोरम , कर्णप्रिय आ भावप्रधान अछि । विवाह आ ताहि मे कोबरक उल्लेख सारंग गीत के स्मरणीय बना दैत अछि, मोन के गुदगुदा दैत अछि, प्रफ्फुलित कय दैत अछि । शिव -पार्वती मिथिला क आदर्श दम्पत्ति छथि तs कृष्ण – राधा प्रेमक उत्प्रेरक । वधु नितदिन गौरी पूजैत छथि आ कृष्ण – लीला सँ उत्प्रेरित होइत रहैत छथि ।हरि आ हर के यैह समन्वय मिथिला के , मैथिल के सर्वतोभाव निष्णात बना दैत अछि जाहि मे सारंग गीत अपन शब्द -सौष्ठव सँ दू समानांतर सामाजिक यथार्थ के चित्रांकन करैत अछि ।


पेंटिंग: डाक्टर रानी झा Rani Jha


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