एकवस्त्राक परम्परा

November 16, 2022 इतिहास पं० शशिनाथ झा
एकवस्त्राक परम्परा

शरीरक रक्षाक लेल वस्त्र महत्त्वपूर्ण वस्तु थिक। एकरा अलंकारक रूपमे सेहो मानल जाइत अछि। बाहरी आक्रमण सँ रक्षाक संगहि लज्जानिवारण सेहो होइत अछि. :-
वस्त्रेण त्रायते लज्जां, वस्त्रेण त्रायते त्वघम् ॥ – कालिकापुराण ।
अर्थात् वस्त्र द्वारा लज्जा एवं पाप सँ रक्षा होइत छैक। एकरा स्वच्छ राखब परम आवश्यक | मलिन वा बासि वस्त्र सँ रोग उत्पन्न होइछ –कदापि न जनैः सद्भिः धार्य मलिनमम्बरम् ॥ — भावप्रकाश (आयुर्वेद)।
अर्थात सभ्य व्यक्ति कदापि मलिन वस्त्र नहि पहिरथि ।

पूर्वकाल मे वनवासी सभ वस्त्रक अभाव में वल्कल ( गाछम छाल, केरा भोजपत्र आदिक छाल) पहिरैत छल — ‘चचाल बाला स्तनभिन्नवल्कला’- कुमारसम्भव- 5,84 ( किशोरी पार्वती तेज सँ चलि देलनि, हुनक स्तनक भार सँ वल्कल फाटि गेलनि)। एहिना कण्वपुत्री शकुन्तला वल्कल सँ सुन्दर लगैत छलीह | गाम ओ नगरक लोक वस्त्र पहिरैत छल आ धनवान सभ मलमल वा रेशमी वस्त्र धारण करैत छल.-
“वधूदुकूलं कलहंसलक्षणम्” – कुमारसम्भव- 5.67 वधू पार्वतीक दुकूल (महीन वस्त्र) हंसक छाप सँ युक्त छल | पूजापाठ काल मे धौतवस्त्रक उपयोग होइछ अपन खिचल वा सम्बन्धीक खीचल वस्त्रे उपयोग मे आनी | धोबीक घोल वस्त्र सँ पूजा नहि करी –
अधौतेन च वस्त्रेण नित्यनैमित्तिकी क्रियाम् | कुर्वन् फलंम चाप्नोति, दत्तं भवति निष्फलम् ॥
विन धल वस्त्र सँ नित्यनैमित्तिक क्रियाक फल नहि प्राप्त हो, देलो दान निष्फल भए जाए|
विशेष कर्मक (विवाह, उपनयन आदिक) काल मे नवीन वस्त्र धारण करी । सीयल, जरल आ अनकर वस्त्र पहिरि कोनो शास्त्र विहित कर्म (यज्ञ, पूजा, पाक, भोजन आदि) नहि करी न स्यूतेन न दग्धेन पारक्येण विशेषतः|
मूषिकोत्कीर्णजीर्णेन कर्म कुर्याद विचक्षणः || महाभारत |

एहिना मूसक कुतरल वा बहुत पुरान जर्जर वस्त्र पहिरि कोनो कर्म नहि करी। कर्मकाल में कुर्ता, कमीज वा ब्लाउज नहि पहिरी —
– ‘न स्यात् कर्मणि कचुकी – शब्दकल्पद्रुम | ( कर्मकाल मे कंचुक (कुर्ता आदि) धारण नहि करी )।
‘स्नात्वैव वाससी धौते अक्लिन्ने परिचायच याज्ञवल्कय

स्नान कर स्वच्छ इवस्त्र बिनु भीजल पहिरि, कर्म करी । तें धोती ओ तौनी राखब आवश्यक। किन्तु यदि एके वस्त्र धारणक प्रतिज्ञा हो, वा एके टा वस्त्र हो तँ ओकरे अगिला भाग सँ ऊपरो धारण कर ली एंक चेद् वासो भवति तस्य उत्तरार्थेन प्रच्छाद‌यति – ( आह्निकतत्व, रघुनन्दन )
तैं भोजन काल मे तौनीक अभाव में अधधोतिया कए लैत छथि। स्त्री अखण्ड वस्त्र धारण करैत छथि । अर्थात् एके टा साड़ी के पएर सँ माँथ धरि झपैत छथि। ई परम्परा प्राचीन काल सँ आइ धरि विद्यमान अछि आन देशक लोक डाण मे घघरा ओ देह मे चोली पहिरैत अछि। मिथिलों में कुमारिक लेल दू टा वस्त्र घघरी आ केचुआ (चोली) विहित अछि । मुदा विवाहिता एके वस्त्र सँ वेष्टित रहैत छथि ।
सीता एकवस्त्रा छलीह —-
पीतेनैकेन संवितां क्लिष्टेनोत्तमवाससा | सपंकामनलंकारा विपद्मामिव पद्मिनीम् ॥
– वाल्मीकि रामायण, सुन्दरकाण्ड, सर्ग-15

अशोकवाटिका में हनुमानजी सीता केँ एहि रूप मे देखलनि पीयर रंगक एकमात्र मलिन मुद्दा उत्तम वस्त्र पहिरने छलीह, धुरिऐल, असज्जित आ कमल सँ रहित कमलिनी जकाँ लगैत ‘ छलीह। साड़ीक पाढ़ि ढोंढ़ी लग बान्हल रहए- “दशा नाभौ प्रयोजयेत् प्रचेता | साड़ीक उपरका भाग के वाम भाग दए पीठ पर होइत माँथ पर चढ़ाबी —-
वामे पृष्ठे तथा नाभौ कक्षत्रयमुदाहृतम्
एभि: कक्षैः परीधन्ते यो विप्रः स शुचिः स्मृतः ॥
– भाव प्रकाश
आइ- काल्हि जिट में दहिना सँ वामा दिस आँचर रखैत छथि जे शास्त्र विरुद्ध थिक।

ई एकवस्त्राक परम्परा त्यागमूलक ओ शुचिता प्रयुक्त थिक । यद्धपि वस्त्रयुगलक उल्लेख सेहो भेटैत अधि—- हला शकुन्तले! अवसितमण्डनासि | परिधत्स्व साम्प्रतं श्रौमयुगलम्” अभिवानशाकुन्तल, चतुर्थ अंक अर्थात् हए शकुन्तला ! गहना पहिराओल गेलीह, आब ई दुइ रेमशमी कपड़ा पहिरह।मुदा ई विशेष मांगलिक अवसरक सजावट थिक | वस्तुतः एकवसना व्रत थिक जेकर सदा निर्वाह होइत रहल अछि । विशेष जाड़ मे तौनी ओढब जकाँ विशेष अवसर पर प्रावारक (दुपट्टा) ओढल जाइत रहल अछि।
गतशताब्दीक उत्तरार्ध मे पाश्चात्य प्रभावसँ साया आ ब्लाउज आएल, क्यो क्यो पहिरए लागल। बाद मे सब अपनओलक मुद्दा, पाकादि शास्त्रीय कार्य में ब्लाउज हटाइये लैते छलीह। एकर बठैत क्रमकें देखि महामहिमोपाध्याय पं० कृष्णमाधव झा व्यवस्थापत्र देलथिन जे प्रतिदिन खीचिकए सुखाओल ब्लाउज पहिरि मानस कए सकैत छथि । तहिया सँ ब्लाउज सर्वसामान्य भए गेल, मुदा ओ आँचरक स्थान नहि लेलक। एके साड़ी डॉर सँ माँथ होइत आँचर बनल अछि । अर्थात् जेहो ब्लाउज साया पहिरैत छथि सेहो एक अखण्डवस्त्र (साड़ी)धारण करिते छथि। जतर पूर्वकाल मे बीस हाथक साड़ी में महिला लपटल रहैत छलीह, दोसर बास्त्र नहि पहिरैत छलीह ततहि आई दस हाथक साड़ी ओहिना पहिरैत छथि ।

जखन पातर साड़ी अएलै त तकर तर मे पर्दाक लेल टुकरा लेल जाए लगलैक ओ ऑचरक् तर मे ब्लाउज अएलै जे सर्वप्रचलित अछि ओ आवश्यको । परन्तु आँचरक स्थान मे ओढ़नी एकवात्रताक विरुद्ध भेने त्याज्ये थिक | आँचर पर सँ ओढ़नी ओढ़ब सएह उचित थिक ।

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