दरभंगा मनोकामना मंदिर के सोझाँ मे बैसल महाराजक मूर्ति के देखैत कतहु पढ़ल मोन पड़ल जे कुंदनलाल सहगल अहि ठाम राजाबहादुर विश्वेश्वर सिंहक बियाह मे “बाबुल मोरा! नैहर छूटो जाए” गउने रहथि। आब अहि गोल चबूतरा पर गै-महीस टहलि रहल अछि, मुदा कखनो एतय ‘बैंड-स्टैंड’ छल। हम आँखि बन्न कय ‘टाइम-मशीन’ सँ पचास-सय बरख पाछू चल गेलहुँ। नरगौना पैलेसक अगुलका बाड़ी में बैसल दरभंगाक बैंड। जेना मैहर (मध्य प्रदेश) क बैंड छल, तहिना दरभंगा महाराजक सेहो। हमर कल्पना में बिस्मिल्लाह ख़ानक शहनाई बाजि रहल अछि। अहि माटि में संगीतक रहस्य सभ नुकैल छैक। जे सरोद आई उस्ताद अमजद अली ख़ान सभ बजबइत छथि, ओकर जड़ि दरभंगा में भेटत। जे राग देस पर ओंकारनाथ ठाकुर स्वतंत्रताक संध्या पर ‘वंदे मातरम्’ गओलनि, ओ राग देस मिथिला में जन्मल। जाहि बाइस टा श्रुति पर हिंदुस्तानी संगीत ठार अछि, ओकर वर्णन मिथिला में भेल। ध्रुपदक तानसेनी गौहर बानी के आहि धरि सम्हारि रखनिहार एतहि के माटि के छथि। अखनो संगीतक उसरल खेत में किछु आशा अछि। भविष्य में ई लेख पढ़ि जे मनोकामना मंदिर जाथि, ओ यैह कामना करथि जे अपन परंपराक दशांशो घुरि आबय।
कार्नाटिक संगीत (कार्नाट) सँ मिथिला धरि
अोना तs तानसेन सभक समय में सेहो ‘पायरेसी’ तs नहि कहब, मुदा एम्हर के राग ओम्हर होइत छल। दक्खिनक कार्नाटिक संगीत’क राग कान्हड़ा में तानसेन जखनि महाराज अकबर के किछु गांधार (ग) आंदोलित क’ सुनौलखिन, ओ प्रसन्न भय ओकर नामे ‘दरबारी’ राखि देलखिन। तहिना गजेंद्र नारायण सिंहक मनतब छनि जे तिरहुत राग सभ’क मूल कार्नाटिक संगीत में अछि। आ ई गप्प प्रामाणिक सेहो लगइत अछि। मिथिलाक इतिहास में कर्नाट वंशक राजा न्यायदेव (1097-1134 ई.) कर्नाट प्रदेश सँ आएल रहथि, आ अपने संगीत विशारद छलाह। हुनक लिखल संगीतक प्राचीन पोथी (भारत भाष्य/सरस्वती हृदयालंकार) के एकटा फोटोकॉपी भंडारकर ओरियेंटल रिसर्च संस्थान (पुणे) में राखल अछि। मूल स्रोत भरिसक हेरा गेलहि। मूल तs कल्हण के राजतरंगिणी सेहो हेरा गेलहि। ई सभटा मूल जँ नालंदा में जरि-खपि गेल हुए, तइयो फ़ोटोकॉपी तs ओहि समय नहि छल। फ़ोटोकॉपी जँ पूना में छहि, तs मूल अवश्य किनको लग नुकायल राखल हैत। हुनकर पोथी में एकटा तार्किक गप्प लिखल जे अजुको संगीतकार सभक ध्यान जोग। ओ लिखलनि जे विलंबित लय में गाबी तs करूणा रस जन्मत, मध्य लय में गाबी तs हास्य आ शृंगार, द्रुत में गाबी तs वीर रस, रूद्र वा भयानक रस जन्मत। कतेक प्रायोगिक गप्प छहि से गीतक गति से रस बदलि जाइत छैक!
राजा न्यायदेव’क समय में संगीतक आनो शास्त्रकार मिथिला में छला। जेना भोज, शारंगदेव, सोमेश्वर आदि। न्यायदेव’क बाद बारहम सदी में बुधन मिश्र नामक संगीत-शास्त्री छला जे कवि जयदेव के शास्त्रार्थ में पराजित कएने छलखिन। अहि में मुदा ई स्पष्ट नहि अछि जे मिथिला में शास्त्रकार बेसी छला वा संगीतकार। ई संभव छहि जे मैथिल सभ पद्धति, स्वरलिपि आ रागक सूत्र बनबइत होथि, जाहि पर आधारित देश’क आन संगीतकार लोकनि गबइत-बजबइत होथि। हिनकर सभक तुलना आधुनिक काल में पं. विनायक पुलुस्कर, भातखंडे, रामाश्रय झा वा देवधर बाबू सभ सँ कयल जा सकइत अछि। जे गओलनि कम, लिखलनि-ज्ञानोपार्जन केलनि बेसी।
तेरहम सदी में कार्नाट वंशक अंतिम मिथिलेश हरि सिंह देव अपने संगीतक पैघ विद्वान छला, जिनका लय लिखल गेल,
“हरो वा हरिसिंहो वा, गीत विद्या विशारदौ,
हरिसिंह गते स्वर्गागीत विद् केवलं हर:।”
हिनक दरबारी ज्योतिरीश्वर ठाकुर (1290-1350 ई.) मैथिली भाषाक पहिल पोथी ‘वर्णरत्नाकर’ लिखलनि जेकर एकटा प्रसिद्ध मीमांसा प्रो. आनंद मिश्र सेहो कयलनि। अहि में संगीतक तीनू अंग- गायन, वादन आ नृत्य तीनू के समावेश छल। एकरा ‘भरत नाट्य शास्त्र’ सँ आगू के संस्करण बूझल जाए किएक तs अहि में बाइस श्रुति आ अठारह जाति के अतिरिक्त एकइस (21) टा मूर्च्छणा के विवरण सेहो देल गेल। आबक हारमोनियम सभ पर ओ बाइस टा श्रुति बजेनाइ सेहो संभव नहि। किछुए दिन पूर्व एकटा प्रो. विद्याधर ओक के सुनलहुँ जे ओ एहन हारमोनियम बना लेलनि जाहि सँ बाइस श्रुति बजि सकइत अछि। ओना विज्ञाने थीक, किछु आई संभव अछि। मुदा मिथिला में ई सिद्धांत आठ सय वर्ष पूर्व लिखि देल गेल।
हिनक पश्चात् जखइन मुस्लिम (गयासुद्दीन तुगलक) आक्रमण सँ हरि सिंह देव नेपाल भागि गेला, तs मिथिलो सँ संगीत पहिल बेर उठि गेल। एकर बाद दोसर बेर उठल जखनि पं. विदुर मलिक जी दरभंगा छोड़ि वृंदावन चलि गेला। लगभग दू-तीन सय वर्ष तक मिथिलाक संगीत इतिहास लुप्त भs जाति अछि। राजा शिव सिंह आ विद्यापति के योगदान भिन्न छनि, आ ओहि सँ संगीत प्रभावित भेलहि मुदा खाँटी शास्त्रीय संगीत परंपरा में काज किछु भरिसक थमि गेलहि। शिव सिंह के दरबार में आन देस से कथक नचइ बला सभ अबइत छला, जाहि में जयत गौड़, सुमति आ उदय के नाम’क चर्चा छैक।
खडोरे वंश के राजा शुभंकर (1516-1607 ई.) के किछु इतिहासकार मिथिला’क मानइत छथिन। ओ दू टा पोथी लिखलनि- ‘संगीत दामोदर’ आ ‘श्री हस्तमुक्तावली’। हमरो मोन कहइत अछि जे ओ मिथिले के छलाह किएक तs हुनक वर्णित ‘राग शुभग’ मिथिलाक राग छी। राजा शुभंकर अप्पन पोथी में वीणा के 29 प्रकार आ 101 ताल के चर्चा केलनि, जे अप्पन समय लय बड्ड आधुनिक गप्प। आब वीणा के इतिहास सँ राजा शुभंकर’क नामे काटि देल गेल अछि। की करबई? जिनक हाथ में कलम, तिनके राज।
एकटा नाम जे मिथिला सँ मिटेनाइ असंभव, से थिकाह कवि लोचन (1650-1725 ई.)। कतेक लोक लोचन झा सेहो लिखइत छथिन, मुदा ओ मात्र लोचन सँ बेसी ठाम लिखल-बूझल जाइत छथि। हुनके लिखल पोथी ‘राग तरंगिणी’ में राग व्याख्या थीक,
“भैरव कौशिकश्चैव हिन्दोलो दीपकस्था।
श्री रागो मेघ रागश्च षडेते हनुमन्ता:।।”
अहि में छह टा पहिल राग जे लिखल अछि से थीक- भैरव, कौशिक, हिन्दोल, दीपक, श्री अा मेघ। बादक संगीत इतिहासकार सभ अहि में कौशिक के स्थान पर मालकौस कहइत छथिन। ओना देवधर बाबू मालकौस के नsब राग कहइत छथिन। जे सत्य हुअए मुदा एकर व्याख्या कवि लोचन कs गेला। दरभंगा-बेतिया के ध्रुपदिया सभ मालकौस के बड्ड पुरान राग मानइत छथिन, आ हमरो सैह सत्य लगइत अछि। लोचनक पोथी में संस्कृत आ प्राचीन मैथिली, दुनूक प्रयोग अछि। हुनक पोथी में राग अडाना के सेहो व्याख्या छनि, मुदा ई नहि कहब जे ‘अडाना’ मिथिले में जन्मल। एतेक अवश्य जे कवि लोचन के समय में मिथिलाक संगीत शीर्ष पर छल। मात्र बंगाल-अवध नहि, चीन तक संगीत पहुँचि गेल छल। कवि लोचन किछु दुर्लभ राग रचलनि जे आब नहि गाओल जाइत अछि- राग गोपी बल्लभ, तिरहुत, तिरोथ, बिकासी आ धनही।
कवि लोचन राज घराना सभ सँ बेसी संभव फराक कवि छला। हुनक एकटा भारत स्तर पर छवि छनि जेना वाचस्पति मिश्र वा मंडन मिश्र के। सत्य तs ई थीक जे मिथिला सँ दरबारी संगीत परंपरा कार्नाट वंशक पश्चात् समाप्ते जेकाँ भs गेल छल। तखनहि किछु नsब इजोत आएल।
राजस्थान सँ मिथिला’क डोरि: ध्रुपद घराना
एकटा बिदेसी सिनेमा थीक – ‘लाचो ड्रोम’। ओहि में राजस्थान सँ स्पेन धरि के संगीत-यात्रा देखाउल गेल अछि जे कोना लोक संगीत लेने-धेने विश्व में कतहु से कतहु चलि गेल। इतिहास छैक जे बीकानेर के नारायणगढ़ में राजा कदर सिंह के दरबार में एकटा संस्कृत आ संगीत’क विद्वान पं. रामलाल दूबे (वा रामदास पांडे) छला। ओ महामारी के भय सँ भागि बिहार आबि धनगइ गाम (जिला-भोजपुर) में बसि गेला। हुनक दू टा पुत्र माणिक चंद आ अनूप चंद तीस बरख तक एकटा गुरू वेंकट राव मातंग सँ ध्रुपद सिखइत रहला। तीस बरख तक! अहि युगल जोड़ी के डुमराँव के शाह विक्रम शाह राजगायक नियुक्त केलनि आ ‘मल्लिक’ के उपाधि देलखिन। पहिने राजगायिका के ‘मल्लिका’ आ राजगायक के ‘मल्लिक’ के पदवी भेटइत छल। ओहि वंश में आगू चारि टा भाय भेला- रामनिवास, सीताराम, राधाकृष्ण आ कर्ताराम। रामनिवास आ सीताराम के वंश आगू नहि बढ़लनि। राधाकृष्ण आ कर्ताराम ग्वालियर चलि गेला आ ओतय उस्ताद नियामत ख़ान (सदारंग) के पुत्र भूपत ख़ान (महारंग) सँ संगीत सिखलनि। अहि गुरू-शिष्य परंपरा दुआरे तानसेन वंश कहल जाइत छैक किएक तs सदारंग तानसेनक परंपरा में छथि। मुदा तानसेन से दरभंगा घराना के सोझ संबंध नहि छैक। बेतिया सँ अवश्य किछु छहि मुदा दरभंगाक ध्रुपद घराना ओहि सँ नsबे कहल जाय। एतेक अवश्य जे ई दुनू भाई राधाकृष्ण आ कर्ताराम के गायन भारतवर्ष में प्रसिद्ध छलनि आ छह टा मुख्य राग पर अधिकार छलनि। हुनके जखनि डुमराँव राजा अहिठाम महाराज माधव सिंह (1775-1807 ई.) सुनलखिन तs कहलखिन जे हमरा हिनका लs जाय दिअ।
आब अहि में किछु स्पष्ट नहि जे अपने राधाकृष्ण आ कर्ताराम अएला वा हुनक कोनो भैयारी एलखिन। अहि में संदेह जे डुमराँव राजा अप्पन मुख्य गायक सभ के दरभंगा पठा देथिन। ग्वालियरक पश्चात् ओ सभ किछु दिन अवध के नवाब शुजाउद्दौला अहि ठाम सेहो रहथि आ पटना में सेहो। ओ सभ दरभंगा आएलो हेता तs फेर कतहु आगू निकलि गेल हेता। जे बाप-पूत दरभंगा अएला, ओ भरिसक वाणीप्रकाश मलिक आ जयप्रकाश मलिक छला। ओना प्रेमकुमार जी के अनुसार राधाकृष्ण आ कर्ताराम अएला। ओ सभ आबि पहिने मिश्रटोला (दरभंगा) में डेरा लेलनि आ बाद में महाराज हुनका बहेड़ी से किछु आगू अमता गाम लग गंगदह में जमीन देलखिन। जयप्रकाश मलिक के बेटा क्षितिपाल मलिक सँ असल अमता घरानाक नींव पड़ल। लोक बहुत नाम लइत छहि, मुदा क्षितिपाल मलिक बुझू एहि घरानाक असल ध्रुव तारा! मल्लिक घराना कतेक नब राग रचलनि, जेना- राग मंगल, देस, श्वेत मल्हार, रत्नाकर, भक्त विनोद आदि। अहि में राग देस दिग्विजय कs गेल। बाद में राजा रमेश्वर सिंहक नाँ पर राग रमेश्वर सेहो रचल गेल। दरिभंगाक खूबी छैक- काव्यात्मक छंद-बद्ध बंदिश, स्पष्ट उच्चारण, विलंबित लय में आलाप, गंभीर स्वर-प्रयोग आ गर्जनक संग द्रुत लय में गमक आ विस्तार। ताहि कारण एकरा गौहर आ खान्धार, दुनू के मिश्रण कहल जाइत छैक।
क्षितिपाल मल्लिक (1840-1923 ई.)
क्षितिपाल मलिक असगर ध्रुपद गबितो छलाह आ पखावज सेहो सुन्नर बजा लइत छलाह। हुनका ध्रुपद, धमार, तिल्लना, तिरवट सभ ध्रुपदिया विधा में निपुणता छलनि। मुदा ओहू सभ सँ बेसी ओ कठिन वा हरायल-भोतिआयल राग’क विशेषज्ञ छला। हमरा ई नहि बूझल जे ई सभटा राग ओ अपने बनौलनि वा कतहु सँ हुनका उपलब्ध भेलनि, मुदा एहि में कतेक राग’क नामो नहि सुनने छी। जेना- पदचंचली, कौस्तुभ, सुही, जूही, कुरंग, बहुली, हेमा, देवगांधार, त्रिवेणी, हर्ष, समावती, चित्रांची, श्यामनाट, कुमारिल इत्यादि। हुनक तीन टा पुत्र भेलखिन- नरसिंह मल्लिक, महावीर मल्लिक आ यदुवीर मल्लिक। नरसिंह मल्लिक के अल्पायु मृत्यु भेलनि, मुदा यदुवीर-महावीर के जोड़ी नाँ-गाँ कs गेल। क्षितिपाल मल्लिक के दू टा शिष्य छलखिन- पं. राजितराम शर्मा मल्लिक आ देवकीनंदन पाठक। अही ठाम सँ मल्लिक घराना में ‘पाठक’ सेहो जुड़ला आ बाद में ‘तिवारी’ आ ‘चतुर्वेदी’ उपनाम सेहो जुड़ल गेल।
यदुवीर मल्लिक-महावीर मल्लिक
ई ध्रुपदिया परंपरा रहल जे युगल गायकी होइत रहल। अहि सँ ध्रुपद’क कठिन रियाज़ आ गायकी किछु सुलभ भs जाइत छैक। मुदा युगल में नीक संबंध आ साम्य रहय तखनि ने? सलामत-नजाकत अली बंधु (शाम चौरसिया घराना) के सेहो संग टूटिए गेलनि। दरभंगा घराना में ई गप्प नीक जे माणिकचंद-अनूपचंद, राधाकृष्ण-कर्ताराम, महावीर-यदुवीर मलिक सँ होइत आहि धरि प्रशांत-निशांत मल्लिक तक युगल परंपरा भगवती कृपा सँ बाँचल अछि।
1924 ई. में दरभंगा के विक्टोरिया हॉल में दुनू भाय यदुवीर-महावीर के सुनहि लेल पं. वी. डी. पुलुष्कर एलखिन तs सुनि चकित रहि गेला। 1936 ई. में मुजफ्फरपुर में बाबू उमाशंकर प्रसाद जी हिनका दुनू गोटा के ‘संगीताचार्य’ के उपाधि देलखिन।
रामचतुर मल्लिक
क्षितिपाल मल्लिक के शिष्य राजितराम शर्मा मल्लिक के पुत्र रूप में अमता गाम में रामचतुर मल्लिक के जन्म भेल। जन्मक वर्ष 1902 वा 1907 ई.। हुनक पिता राजितराम जी ‘राग विनोद’ के रचयिता छला जेकर विवरण हुनक पोथी ‘भक्त विनोद’ में छनि। रामचतुर मल्लिक जी पहिने हुनके संग सिखनाइ प्रारंभ केलनि। ओकर पश्चात ओ दरबारक सुरबहार वादक रामेश्वर पाठक जी से सिखय लगला।
पं. रामचतुर मल्लिक 1924 ई. में राजदरबारी नियुक्त भेला आ राजबहादुर विश्वेश्वर सिंह के प्रिय रहथि। हुनका संग ‘37 ई. में इंग्लैंड आ फ़्रांस घूमति ओ पहिल बेर दरभंगाक ध्रुपद के विश्व-जतरा करौलनि। हुनक पश्चात् तs पं. अभयनारायण मल्लिक रोम आ जर्मनी, पं. सियाराम तिवारी आ पं. विदुर मलिक यूरोप, पं. प्रेमकुमार मलिक आ हुनक पुत्र लंदन दरबार फ़ेस्टिवल गेला। पीटर पान्के एकटा फ़्यूज़न बनौलनि आ पेरिस में दरभंगा घराना पसरल, मुदा पहिल पंडित रामचतुर मल्लिक जी। रामचतुर मल्लिक जी लग बंदिश सभक भंडार छलनि। हमर सूनल गप्प जे सब सँ पैघ भंडार भारत में बेतिया लग, आ तकर बाद पंडित रामचतुर जी लग। एतबय नहि, उस्ताद फैयाज़ ख़ान जेना ठुमरी आ शास्त्रीय गबइत छला, तहिना पंडित जी ध्रुपद के अतिरिक्त चारू पद गबइत छला। खयाल, दादरा, टप्पा/ठुमरी आ लोकगीत (विद्यापति/भजन) सभ किछु। एक बेर कजनी बाई ठुमरी गबइत रहथिन, महाराज हिनको कहलखिन ठुमरी गबइ लय। कजनी बाई टोंट कसलनि जे, “ए रामचतुरबा! तू का गैवे”। मुदा ओ तेहन ठुमरी गेलखिन, जे कजनी बाई सुनिते रहि गेलखिन। 1967 ई. में हुनका पद्मश्री सँ सम्मानित कयल गेल। दरभंगा घराना सँ दोसर पद्मश्री पं. सियाराम तिवारी जी के भेटल।
पं. रामचतुर मल्लिक के शिष्य भेलखिन- अभयनारायण मल्लिक। ओ जयनारायण मल्लिक के पुत्र छथिन। अभय नारायण जी के पुत्र संजय मल्लिक ध्रुपद गायकी धेने छथि।
पं. सुखदेव मल्लिक परिवार
रामचतुर मल्लिक के बिहार सरकार जे बेसी प्रश्रय नहि देलकनि, तs अहि सँ दरभंगाक संगीतकार सभ के मोन टूटय लगलनि। जे साठि-सत्तर के दशक में बीणापाणि क्लब सभ में दुर्गा पूजा में रामचतुर मल्लिक आ विदुर मल्लिक द्वारा ध्रुपद गाओल जाइत छलैक, से बन्न हुअए लगलइ। पं. अभयनारायण मल्लिक खैरागढ़ चल गेला। आ पं. सुखदेव मल्लिक के पुत्र पं. विदुर मल्लिक जी वृंदावन चल जाइत रहला। हिनका दुनू लोकनि के अमता/दरभंगा भरि जीवन मोन में रहलनि, मुदा की करतथि जखनि दरभंगे बदलि गेल? बाद में हुनक पुत्र प्रेमकुमार मल्लिक इलाहाबाद में पं. विदुर मल्लिक ध्रुपद संस्थान स्थापित कय अप्पन नब-नब शिष्य बनेनाइ प्रारंभ केलनि। अही शृंखला में पं. विदुर मल्लिक जीक शिष्य सुखदेव चतुर्वेदी जीक नाम अबइत अछि, जे अजुका नीक ध्रुपद गायक छथि। प्रेमकुमार जी के पुत्र लोकनि प्रशांत और निशांत मल्लिक ‘स्पिक मकै’ आ आन सम्मेलन सँ बच्चा-युवा में ध्रुपद के पसारि रहल छथि। हुनक पुत्री प्रियंका मल्लिक पांडे नीक खयाल गायकी करइत छथि।
विदुर मलिक के दोसर पुत्र रामकुमार जी अखनो दरभंगा में बैसि ध्रुपद के सम्हारने छथि। हुनक पुत्र समित मलिक आ साहित्य मलिक के जोड़ी सेहो नीक ध्रुपद गायक छथि।
मिथिलाक खयाल घराना
भारतवर्ष में एक्कहि टा क्षेत्र अछि जतय दुनू संगीत शैली के घराना रहल, आ ध्रुपदिया सभ सेहो खयाल गायकी करइत रहला। ऑलराउंडर सभक गढ़ रहल मिथिला। एकर कारण ईहो संभव जे ध्रुपद के ख्याति घटय लगलहि, मुदा अहुना नीक खयाल गायकी होइत रहल।
मधुबनी घराना
राँटी-मंगरौनी सँ पसरल मधुबनी घराना। एकर जड़ि में ध्रुपद रहइ जे क्रमश: खयाल भेल गेलहि। जखनि ध्रुपदिया तानसेन के अगिला खाढ़ी खयाल गाबय लागल, ता आन कियैक नहि? मधुबनी में ध्रुपद आद्या मिश्र तक बाँचल छल, मुदा हुनक पुत्र रामजी मिश्र के गाओल “अलबेला सजन आयो रे” कान में नचइत अछि। हुनके प्रयास सँ मिथिला इनवर्सिटी में संगीत विभाग फूजल, आ दरभंगाक खयाल गायकी पसरल। मधुबनी सँ आन नाम सभ अछि- भनसा मिश्र, डीही मिश्र, खरबान मिश्र, गुरे मिश्र, शिवलाल मिश्र, सित्तू मिश्र, हीरा मिश्र, झिंगुर मिश्र, भगत मिश्र, ललन मिश्र, लक्ष्मण मिश्र, परमेश्वरी मिश्र, कमलेश्वरी मिश्र आदि।
पनिचोभ घराना
पनिचोभक खयाल घराना कखनो नीक छल, ई सुनल गप्प। एतय के अबोध झा (1840-1890 ई.) आ हुनक पुत्र रामचंद्र झा से ई परंपरा शुरू भेल। दुनू गोटे बनैली आ दरभंगा दरबार में नियमित गबइत छला। एकर अतिरिक्त मंगनू झा, दिनेश्वर झा, दुर्गादत्त झा, जटाधर झा, रमाकान्त झा, ब्रजमोहन चौधरी, नचारी चौधरी आदि गबइत रहला।
पंचगछिया घराना
अखनि धरि मिथिलाक शास्त्रीय परंपरा में आन जाति के संगीतज्ञ कम वा नहि छला। मुदा सहरसा पंचगछिया के रायबहादुर लक्ष्मीनारायण सिंहक खबास मांगन सँ ई परंपरा शुरू भेल। रामेश्वर खबास के पुत्र मांगन खबास ओहिना बर्तन मंजइत गबइत छला, तs रायबहादुर प्रभावित भय हुनका शिक्षा दिऔलखिन। गजेंद्र बाबू अप्पन पोथी में मांगन खबास के महान् गायक कहलखिन। ओंकारनाथ ठाकुर तक हुनक संगीत सँ प्रभावित छलखिन। कहल जाय छहि जे रसदार ठुमरी में हुनकर जोड़ा नहि। आ ओ जखनि राग मेघ गबैत तs ठीके अकास मेघौन भ जाए। बाद में 1936 ई. में ओहो विश्वेश्वर सिंह लग दरभंगा आबि गेला। मांगन आ एकटा रघू झा के अनेक शिष्य भेलखिन, जेना- तिरो झा, बाल गोविंद झा, बटुकजी झा, युगेश्वर झा, उपेंद्र यादव, परशुराम झा, शिवन झा, रामजी झा, पुनो पोद्दार, सुंदर पोद्दार, गणेशकांत ठाकुर इत्यादि। अहि में सभ जातिक समावेश छल।
बनैली एस्टेटक संगीत
एकटा पढ़ल गप्प अछि जे एक बार कुमार श्यामानंद सिंह के भतीजी के बियाह में पं. जसराज अएला तs मंदिर में क्यो भजन गबइत रहथि। एहन स्वर सुनि पं. जसराज भाव-विभोर भय मंदिर दीस बढ़ला, आ ओतय कुमार साहेब के अपने भजन गबइत सुनलखिन। फेर कुमार साहेब कतेक बंदिश गाबि सुनौलखिन। मुदा कुमार श्यामानंद सिंह व्यवसायिक गायन में अपने नहि अएला। एक बेर विदुषी केसरबाई केरकर हुनकर गीत सुनि आग्रह केलखिन जे हुनका सँ गण्डा बन्हौथिन। आब ओ सिखेनाई प्रारंभ केलखिन तs स्थाई उठा लेलखिन मुदा अंतरा नहि उठैल भेलनि। अहिना एक बेर प्रसिद्ध तबला वादक लतीफ़ हुनक गीत पर तकिते रहि गेला जे ‘सम’ कोना दी। कुमार साहेब हाथ से देखौलखिन तs संगत देल भेलनि। 1995 ई. में कुमार साहेब के मुइला के बाद हुनक पुत्र बिहारी जी निजी रूप से खयाल गायकी करइत छथि, मुदा ओहो व्यवसायिक गायन में नहि छथि।
मिथिलाक ठुमरी
गौहर जान
“रस के भोरे तोरे नैन”
भारतवर्षक पहिल ग्रामोफ़ोन रिकॉर्ड गौहर जानक छनि जिनका पछिला साल गूगल डूडल पर अएला पर लोक चिन्हलकैन। एकटा आर्मीनिया मूल के एंज़ेलिना जखइन गौहर जान बनली तs सबसे पहिने 1887 ई. में दरभंगा महाराज लक्ष्मीश्वर सिंह के दरबार में गओलनि, आ 1898 ई. में लक्ष्मीश्वर सिंहक मृत्यु धरि दरभंगे दरबार में नृत्य आ गायन करइत रहली। ओ बुलंद ‘माई नेम इज़ गौहर ख़ान’ से ठुमरी के अंत करइ वाली के कतेक गीत अखनो यू-ट्यूब पर भेट जायत। हुनका सँ पूर्व 1885 ई. में एकटा नामी ठुमरी गायिका आ नर्तकी जोहराबाई सेहो महाराज दरबार में आबि रहली, आ बाद में पटना चल गेली।
मिथिलाक वादन
रामेश्वर पाठक
पं. रविशंकर अप्पन पोथी में दू टा प्रेरणा-स्रोतक चर्चा केलनि। एकटा बाबा अलाउद्दीन ख़ान आ दोसर रामेश्वर पाठक। ई गप्प अद्भुत् इतिहास छैक जे मैहर से बाबा अलाउद्दीन ख़ान अप्पन शिष्य रविशंकर के दरभंगा अनलखिन आ पं. रामेश्वर पाठक के गण्डा बन्हई के आग्रह केलखिन। ओ भरिसक नहि बान्हलखिन, मुदा पं. रविशंकर मोने मोन गुरू मानइत रहलखिन। आब रामेश्वर पाठक के एकहि टा ‘बिहाग’ रिकॉर्डिंग उपलब्ध आ एकटा पुरान सन फ़ोटो पं. प्रेमकुमार मलिक जी के पोथी में भेटल। रामेश्वर पाठक के एकटा भाय रामगोविंद पाठक कासिमबाज़ार (बंगाल) चल गेलखिन। हुनके पुत्र (रामेश्वर जीक भातिज) भेलखिन लोकप्रिय सितार वादक पं. बलराम पाठक जी। बलराम पाठक जी के पुत्र अशोक पाठक जी आकाशवाणी, पटना से जुड़ल रहला आ आब नीदरलैंड में रहइत छथि। रामेश्वर पाठक जी के एकटा संतान नारायण जीक बियाह मल्लिक परिवारक सविन्दा दाई सँ भेलनि आ आब ओहि पाठक परिवार से तबला-पखावज वादक सभ छथि।
अब्दुल्लाह खाँ आ सरोदक आविष्कार
प्रसिद्ध उस्ताद अमजद अली ख़ान के पितामह नन्हे ख़ान के भाय मुराद अली नि:संतान छला। ओ ग्वालियर छोड़ि शाहजहाँपुर आबि गेला जतs एकटा अनाथ के अप्पन बेटा बनौलनि आ संगे दरभंगा महाराज लग आबि गेला। ओ अनाथ बालक अब्दुल्लाह ख़ान मुराद अली के मुइला के बाद राज संगीतकार बनला। आ दरभंगे में ओ पुरना अफ़गानी रबाब में परिवर्तन कए सरोद बनौलनि। अजुका सरोद एकटा अनाथक बनौल छहि, आ बंगाश घरानाक रक्त-वंशज के नही। आ सेहो मिथिला में बनल अछि। बाद में हुनक संतान सभ बंगाल जा बसलनि आ रवींद्र नाथ टैगोरक परिवार सँ नीक संबंध छलनि। हुनके शिष्य परंपरा में आब बुद्धदेव दासगुप्ता छथि।
पखावज
बिहार में पखावज के दू टा मुख्य घराना भेल- दरभंगा आ गया। ध्रुपद में पखावज आवश्यक छलैक तs मल्लिक परिवार में कतेक पखावज आ तबला वादक भेला जे गायक के संग देथिन। अहि में कतs से प्रारंभ करी आ कतs से अंत। प्रेमकुमार जी के पोथी सँ गनी तs पचास टा तबला-पखावज वादक तs मात्र मल्लिक परिवार में। आ तहिना अनेक पाठक परिवार में।
मिथिलाक संगीतक अष्टभुजा
अहि लेख’क आ मिथिलाक संगीतक कोनो अंत नहि छैक। बिस्मिल्लाह ख़ान के मरइ सँ पूर्व इच्छा छलनि जे एक बार दरभंगा में शहनाई बजाबी आ ओहि पोखरि में नहाई जाहि में दिन में दू बेर नहाइत छलहुँ। सिद्धेश्वरी देवी महाराजक नौका विहार में ठुमरी गबइत छली। प्रसिद्ध गायिका शुभा मुद्गलक गुरू रामाश्रय झा ‘रामरंग’ दरभंगाक छला आ हुनक गुरू पं. भोलानाथ भट्ट सेहो दरभंगेक छला आ इलाहाबाद जा के बसि गेला। आब अहि में कतेक नाम, कतेक संदर्भ छूटि गेल। मुदा एतेक स्पष्ट छहि जे शास्त्रीय संगीतक सभ शैली आ सभ रूप में दरभंगा अग्रणी छल। आब एकर पुनर्जागरण आवश्यक थीक, आ दरभंगा के ध्रुपद शिक्षण संस्थान में बेसी सँ बेसी बाल-प्रशिक्षु के राखि एकरा जीवित राखल जाए।
प्रमुख संदर्भ-ग्रंथ/स्रोत: