लोकदेवताक अध्ययन विधि

November 16, 2022 धर्म डॉ. प्रदीप कांत चौधरी
लोकदेवताक अध्ययन विधि

मैथिली मचान पर हाले में धर्मराज बाबा के विषय में एक टा संक्षिप्त आलेख प्रकाशित भेल छल। ओहि आलेख पर किछु नींक टिप्पणी आ आग्रह सेहो पोस्ट भेल। पढ़ि कय मोन प्रसन्न भेल जे ग्रामदेवता आ कुलदेवता के विषय में अखनो बहुत लोक जिज्ञासु छथि। नव पीढ़ी यदि अहि प्रश्न में रुचि लइथ त कम समय में बहुत जानकारी संकलित भ सकैत अछि।

 

मुदा आन सब कार्य के समान अकादमिक शोध या रुचि सेहो कनी तकनीकी विधि (Methodology) के अपेक्षा राखैत छैक। अहि आलेख में हम नवतुरिया सब लेल किछु अपन अध्ययन विधि के किछु सामान्य बिन्दु प्रस्तुत क रहल छी। मुदा आरंभ करय स पहिने दू टा बातनिवेदन करब। पहिल बात,ई आलेख समाजशास्त्री या विद्वान लोकनि लेल नहि अछि, सिर्फ मूलभूत अवधारणा के प्राथमिक स्तर पर चर्चा कैल गेल अछि। दोसर कोनो प्रकारक सामाजिक अध्ययन अनेकों विधि सं भ सकैत अछि। एतय एक टा विधि प्रस्तावित अछि, एकरा स भिन्न बहुत आन तरहक अध्ययन विधि सेहो स्वागतयोग्य अछि। लोकदेवताक अध्ययन निम्नांकित किछु बिंदु में व्यवस्थित कयल जा सकैत अछि।

सब स पहिने जाहि ग्रामदेवताक अध्ययन कयल जा रहल अछि ओकर उपासना स्थलक भौगोलिक आ सामाजिक परिदृश्यक आकलन करबाक चाही। देवस्थान नदी कात में अछि,गाम के बीच में अछि, चर-सरेह में अछि, कोनो टीला पर अछि, कोनो गाछ तर अछि, गाछ अछि त कोन गाछ तर अछि, इत्यादि प्रश्न पुछबा के चाही। देवी-देवता के वर्गीकरण हुनकर आवासीय प्रवृत्ति स सेहो होइत छैन्हि। समाजशास्त्रीय अध्ययन स ज्ञात होइत अछि जे अधिक पुरातन वर्ग के देवी सबहक विषय में सामाजिक धारणा छैक जे ओ पईघ गाछक तुलना में झाड़ी आ फलदार छोट गाछ जेना बेल, नीम, बेर, इमली पर निवास करैत छथि।

 

किछु देवी एहन भेटती जिनका विषय में प्रसिद्ध अछि जे ओ खुजल स्थान में रहय चाहैत छथि। कहल जाइत छहि जे यदि कोनो व्यक्ति हुनकर स्थान पर मंदिर या ऊपर स छत बनयबाक कोशिश केलखिन त देवीस्वप्न देलखिन जे हमर स्थान पर मंदिर आ छत नहि बनाबय के चाही। एकर अर्थ भेल जे ओदेवी अखन तक वनदेवी (Goddess of Wild )छथि आ सांस्कृतिक रूप स हुनकर स्वीकृति ग्रामदेवी के रूप में नहि भेल छनि। बहुत देवी छथि जिनका चिनबार पर या पूजा घरक भीतर रहय में कोनो आपत्ति नहि होइत छैन्हि। भौगोलिक स्थिति के विश्लेषण स देवी-देवताक प्रकृति के थोड़ेक अनुमान कयल जा सकैत अछि।

जेना बघौत बाबा के स्थान अधिकतर नदी कात या चर-चांचड़ में भेटतया आदर्श रूप में बरहमथान गाम स बाहर पच्छिम दिशा में हेबाक चाही, आदि।

अहि प्रकार ग्रामदेवताक स्थानक सामाजिक पृष्ठभूमिक आकलन सेहो लाभदायक होइत छैक। गामक किछु लोकदेवताकस्थान में मुख्यतः दलित समाजक लोक पूजा लेल जाइत छथि। कतेको राजपूत बहुल गाम में बरहमथानक जगह माईस्थान अधिक प्रशस्त भेटैत अछि।इहो गौर करय के चाही जे ओहि स्थानक सेवक या सेवैत के छथि। ओहि स सेहो सामाजिक पृष्ठभूमिक किछु अंदाज भेट सकैत अछि। प्रत्येक गाम में अनेकों देवस्थान भेटत, मुदा कोन समाज केकरा कतेक महत्व दैत अछि से ज्ञात करय के एक टा तरीका अछि जे पता कयल जाय किओ समुदाय मुंडन, उपनयन, विवाह आदि के उपरांत गामक कोन देवस्थान में पहिल दर्शन करय लेल जाइत छथि। अहिना कुलदेवताक अध्ययन करैत सामाजिक पृष्ठभूमि के सब स पहिने देखय चाही। कि परिवार कोनो दोसर गाम स ऐतय आबि क बसल छथि? देशांतरण (माइग्रेशन) आ कुलदेवताक बीचक संबंधक अध्ययन बहुत उपयोगी भ सकैत अछि।

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लोकदेवताक स्थान पर कोनो मंदिर या चबूतरा, या घेराबा यदि छैक त ओकर बनय के तारीख जानय के चाही। यदि कोनो संरचना बनल छैक त फूसक छैक कि सीमेंटक बनल छैक?देवस्थानक जिम्मा कतेक जमीन छैक,कि ओ जमीन पहिल सर्वे में दर्ज छैक, खतियानी छैक कि नहि ?कि जमीन में कोनो विवाद छैक ? यदि हां त ओकर चरित्र कि छैक, आदि।
ओहि स्थान के अथवा देवी-देवता के पाबनि-तिहार कहिया होइत छैक,साओन या आसिन या माघ या चैत?इहो गौर करय के चाही जे हिनकर पाबनि कोनो फसिल चक्र अथवा ऋतु चक्र स जुड़ल अछि अथवा नहि।

गैर-खेतिहर आ गैर-पशुचारी समाज के पाबनि ऋतु-चक्र स मुक्त भ सकैत अछि। कतेको दलित समुदाय छथि जिनकर पूजा नियतकालीन नहि होइत छैन्हि, जखन पाई इकट्ठा भ जाय त ओ सब पूजा द दैत छथिन्ह। ज्यादातर ग्रामदेवी-देवताक पाबनि साओन मास में देखल जायत अछि। पाबनिक मास स सेहो देवी-देवताक चरित्र प्रकाशित होइत अछि। यदि कोनो कालीस्थान में पिंडी बनल अछि आ साओन मास में पाबनि होइत छैक त ओ बंगालक तांत्रिक प्रभाव बाली दक्षिण कालिका स भिन्न काली छथि। सप्ताह के कोन खास दिन बेरागन मानल जाइत अछि, सोम-शुक्र, मंगल-शनि अथवा आर कोनो?पूजाविधि एवं कर्मकांडक गवेषणा आवश्यक छैक,यद्यपि काल-क्रम में अलग-अलग देवी-देवता के अनुष्ठानक विशिष्टता आ विविधता समाप्त भ गेल छैक। तथापि भुईयां बाबा, सलहेस महराज, राह बाबा, शशिया महराज एवं अन्य लोकदेवता के पूजाविधि में शास्त्रीय परंपरा स जे भिन्नता छैक ओकरा ध्यानपूर्वक नोट करय के चाही।

देवी-देवता के भोग-प्रसाद के विश्लेषण अध्ययन के मुख्य विषय भ सकैत अछि। जनऊ, धोती, लंगोट, लाठी, खड़ाऊँ, गाँजा, खीर भोजन, कड़ाही प्रसाद में स कि चढ़ैत छैक?हुनका रक्तबलि पड़ैत छैक कि नहि?यदि पड़ैत छैक छागर, पाठी, सूअर, परेबा, मुर्गा आदि में स कि सब? कि बलि आब बंद भ गेल छैक?कि आब सांकेतिक बलि होइत छैक?सांकेतिक बलि जेना झिमनी या कुम्हरक बलि देबय के प्रथा सेहो देखल जाइत छैक।

कुलदेवताक पूजा में कि सब भोग चढ़ैत छैक,केरावक दलही पूरी, बिना चीनी के तस्मै, बिना नीमक के पकवान? देवता के भोग स हुनकर स्वभाव आ पृष्ठभूमि के अतिरिक्त हुनकर उद्भव के किछु अंदाज लगा सकैत छी। एक टा वस्तु पर गौर करियोक कि पूजा में जौ के उपयोग होइत छहि मुदा गहूम के नहि। जातिगत समाज में तिल के उपयोग अनुष्ठान में होइत छैक मुदा जनजातीय समुदाय में सरसों-राई के। प्रतीत होइत अछि जे जाहि समुदाय में जे प्रथम फसिल होइत छैक ओ पवित्र बनि जाइत अछि। केराव (अंकुरी) दालि के अनुष्ठानिक महत्व देख क लागैत अछि जे ई पहिल दालि रहल हैत। एकर आन व्याख्या सेहो संभव अछि, मुदा खास बात ई जे लोकदेवता के अनुष्ठान में अर्पित वस्तु के ध्यानपूर्वक अध्ययन करय के चाही।

लोकदेवता संग एक टा खास बात ई अछि जे सब के पूजा पिंडी के रूप में होइत छैक, विग्रह के कोनो रूप नहि होइत छैक। ताहि लेल हिनकर नामें पर ध्यान देबाक चाही। नामें सब स अधिक महत्वपूर्ण संकेत भ सकैत अछि।मुदा एतय किछु सावधानी के सेहो आवश्यकता होइत छैक। किछु लोक ब्रह्म नाम सुनैत देरी हुनका वैदिक-पौराणिक देवता ब्रह्मा स जोड़ के प्रयास में लागि जाइत छथि।कोनो देवी के नाम अवैत देरी दुर्गा आ पौराणिक शक्ति के अवधारणा स जोड़य लेल व्याकुल भ जाइत छथि। लोकदेवताक नाम के कोनो संस्कृत शब्द स समानता के कारण लगले कोनो वैदिक-पौराणिक देवता स तुलना नहि करय के चाही।जेना अधिकतर गाम में बरहमथान होइत अछि। बरहम बाबा के नाम अक्सर कोनो ठाकुर कहल जाइत छनि।

अक्सर एहन युवा ब्राह्मण जिनकर यज्ञोपवीत भ गेल छैन्हि लेकिन विवाह नहि भेल रहइन आ ओ अकस्मात मृत्यु के प्राप्त भेला, हुनका गाम के ब्रहम के रूप में प्रतिष्ठा देल जाइत छैन्हि। पीपड़-पाकड़ के गाछ पर निवास करय बला बरहम बाबा वृक्ष पूजा, यक्ष पूजा एवं डीह स्थापित करय के जनजातीय परंपरा के मूर्त रूप छथि पौराणिक ब्रह्मा के नहि। अहिना धर्मराज के यमराज या युधिष्ठिर स जोड़ल जाइत अछि। धरमठाकुर के संप्रदाय बंगाल स विकसित भ क पूर्वी बिहार आ मिथिला में फैलल अछि। पश्चमी बिहार आ उत्तर प्रदेश में ई संप्रदाय गौण अछि। धर्मराज संप्रदाय के गहन अध्ययन करय बला किछु यूरोपीय विद्वान सबहक आकलन में धर्मराज संप्रदाय के मूल तत्व गहन जनजातीय परंपरा आ बौद्ध धर्म स प्रभावित अछि। भारतक धार्मिक विकास में वैदिक-अवैदिक सब तरहक धाराक महत्व रहल अछि।

लोकदेवताक अध्ययन तखने सार्थक भ सकैत अछि जखन ओहि देवी-देवताक विशिष्टता उजागर कयल जा सकै। ताहि लेल आग्रह जे ग्रामदेवता आ कुलदेवताक अध्ययन में अनिवार्य रूप स पौराणिक कथा आरोपित नहि करी। बल्कि लोकदेवता के उपासना मण्डल में प्रागैतिहासिक तत्वक प्रचुरता रहैत छैक। पौराणिक तत्व के तुलना में प्रागैतिहासिक जनजातीय तत्व के पहचान कहीं अधिक लाभदायी भ सकैत अछि।

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लोकदेवता के प्रचलित कथा एवं गीत के आलोचनात्मक अध्ययनक प्रयास करय के चाही। प्रत्येक लोकदेवता के उद्भवक किछु कथा होइत छहि, जाहि में ओहि गाम-समाजक इतिहास सेहो निहित रहैत छैक। एक टा शोधार्थी के ओहि कथाक आलोचनात्मक दृष्टि स विश्लेषण करय के आवश्यकता पड़ैत छैक। जेना बहुत स्थान पर सती माईक स्थान भेटत। कालांतर में बहुत रास पौराणिक कथा ओहि में जुड़ल हैत, मुदा कनी टा खोदला स पता चलि सकैत अछि जे गामक कोनो बेटी-पुतौहु कोनो अन्याय के प्रतीकार में आत्मदाह केने हेती आ संपूर्ण गाम मिल कय ओहि अपराध के झांपन देबय लेल, ओहि स्थान के तीर्थ में रूपांतरित केने छथि। एक टा आर उदाहरण देब। कईएक गाम में मुसहर बाबा, दुसाध बाबा आदि के थान भेटत। खोज बीन स पता चलत जे कोनो जमींदार के अत्याचारक कारण कोनो हरवाह-चरवाह के जान चलि गेलैक। मरला के बाद ओ स्वप्न देलकइ जे हम फलां गाछ पर छी। हमरा पूजा दीय त आहांक अनिष्ट नहि हैत। जाहि मुसहर के जीवैत एक लोटा जल नहि भेटलई ओकरा मरय के बाद फूल पान प्रसाद भेटय लागल। कारण अपन अनिष्ट के आशंका! ग्रामदेवता के खोज अहां के ग्रामीण इतिहास के ओहि अध्याय स परिचित करा सकैत अछि। शोधार्थी के लोकदेवताक अध्ययन में सामाजिक अन्याय के परंपरा के प्रति सेहो जागरूक रहय चाही।

कुलदेवी-कुलदेवताक यदि गप्प करी त एकटा रोचक गप्प ई जे सवर्ण परिवार में कुलदेवी-देवता मात्र एक टा देखल जाइत छथि मुदा पिछड़ा परिवार में 3- 4 एवं दलित परिवार में 8-10 तक भ सकैत अछि। प्रायः ई जाति सब में कतेको तरह के पूर्वज मनुषदेवा आ कुमरदेवी के रूप में पूजित होइत छथि। एकरा अतिरिक्त ई लोकनि प्रायः बाहरी समाज स आशंकित हुअ के कारण अपन पुरातन देवी-देवता के कुलदेवता के रूप में बचेने आयल छथि। इहो भ सकैत अछि जे कुल के धारणा दलित-पिछड़ा समाज में विकसित नहि होय ताहि लेल अहि प्रश्न के उत्तर में ओ अपन जाति देवता के सेहो कुलदेवता के रूप में प्रस्तुत कय दैत छथि।

मनुषदेवा के अवधारणा एक प्रकार स विशिष्ट पूर्वजक स्मृति के बचा क राखैत छैक। कतेको बेर दुर्घटना या बीमारी स असमय मृत्यु पाबय बला परिवार के सदस्य मनुषदेवा के रूप में पुजाइत छथि। हुनका पर डायन के शिकार हुअ के अंदेशा सेहो रहैत छैक। किछु परिवार में नया मनुषदेवा आइब गेला के बाद पुरान पृष्ठभूमि में चलि जैत छथि। पूर्वी बिहार में एकरा गैयाँ पूजा सेहो कहल जैत अछि। अहिना अविवाहित कुमारि लड़की के असमय मृत्यु के बाद भगत लोकनि ओकर आत्मा के संतुष्ट करय लेल हुनको पूजा देबय के बात कहैत छथि। मुदा कुमरदेवी के चलन मानुषदेवा स कम देखय में आवैत अछि।

उपासना स्थल (Sacred space)यानी आवासन के ओ भाग जे धार्मिक कृत्य लेल उपयोग होइत अछि ओकर कई एक दृष्टि स अध्ययन कयल जा सकैत अछि। ज़्यादातर घर में भंडारकोण में कुलदेवता के पीढ़ी या पिंडी या चिनबार बनाओल जाइत अछि। मुदा एकर अपवाद सेहो देखय के भेटत। जेकरा घर में जगह के अभाव छैक, विशेषतः दलित जाति के गरीब लोक लग, ओ मनसा पूजा यानी बिना पिंडी के मानसिक संकल्प स पूजा करैत छथि। किछु ग्रामीण घरक लग एक जगह साफ कयबिना कोनो पिंडी के ओकरा पूजा-पाठ के जगह बना लईत छथि जेकरा देवकुड़ी कहल जाइत छैक।

उपासना स्थलक दृष्टि स कुलदेवता-ग्रामदेवता के पांच स्तर देखय में आवैत अछि। सब स भीतर चिनबार पर, ओकरा बाद पूजा घर के देहरी पर, फेर आंगन मे, गाम के भीतर आ तखन गाम के बाहर। ई पांचू पांच तरह के देवता छथि जे अलग-अलग स्तर पर पूजित होइत छथि। जेना कुलदेवी बन्नी या बंदी या काली-बंदी माई सब स भीतर, देहरी पर गोरैया,आंगन में महाबीर, कोयलाबीर या अन्य कोनो बीर, गाम में बरहम बाबा आ गाम के बाहर बघौत बाबा आदि के शृंखला कतेको गाम आ परिवार में देखल जा सकैत अछि। ई क्षैतिज विस्तार (Spatial spread)अध्ययनक एकटा बिंदु भ सकैत अछि।

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कुलदेवता के पूजा आ हुनकर प्रसाद में महिला सभक भागीदारी ध्यान देबय लायक विषय अछि। कतेको एहन देवता छथि जिनकर पूजा आ ओरियान महिला सब नहि करैत छथि। कतेक जगह पुतौहु के कुलमंत्र लेला के पश्चात अथवा एक टा विशेष अनुष्ठान (घीढारी) के बाद कुलदेवता पुजय के अधिकार भेटय छन्हि । किछु परिवार में कुलदेवता के प्रसाद बेटी सबके नहि देल जायत छैन्हि। प्रसाद खाय में सेहो बहुत नियम देखल जाइत छैक। ज़्यादातर कुलदेवता के प्रसाद पूजा घर में खा कय बचल ओतय गाड़ि देल जाइत छैक।अथवा घरक सीमानक बाहर नहि जाइत छैक। मूल जनजातीय पद्धति आ रक्तबलि परंपरा में प्रसाद सीमानक बाहर जाय के प्रावधान नहि छैक,ताहि लेल यदि किनको घर में प्रसाद कुल या घर स बाहर जाइत अछि त ओकरा नियमक शिथिलन रूप में देखल जा सकैत अछि। घड़ी पूजा में रोट तोड़य बला व्यक्ति पर घर स बाहर निकलय पर प्रतिबंध सेहो अहि दृष्टि स महत्वपूर्ण अछि।

पिछड़ा आ दलित परिवार में कुलदेवताक नाम विवाहक संबंध निर्धारण में जांचल जाइत छैक। प्रत्येक परिवार वास्ते किछु वर्जित देवी-देवता होइत छैक। केकरो जलपा वर्जित, केकरो अलखिया, केकरो गहिल । जाति के भीतर एक प्रकार के छोट समुदाय बनि जाइत छैक। संभवतः जातिक निर्माण समान पेशा बला विभिन्न समूह के मिश्रण स भेल अछि। समान कुलदेवता के मतलब समान उपसमूह भ सकैत अछि। जेना विभिन्न प्रकारक पशुचारी समुदाय मिल कय आई के यादव जाति बनल हैत। लेकिन एक जाति बनि गेला के बावजूद आंतरिक दरार विवाहक समय उभरि जाइत छैक। या जेना गोत्र, मूल, पांजि मैथिल ब्राह्मण आ कायस्थ जाति में विवाह लेल महत्वपूर्ण विचारबिंदु होइत छैक तहिना कुलदेवता किछु दलित-पिछड़ा जाति में होइत छैक। हालांकि आधुनिकीकरण संग एकर महत्व आब कम भ रहल अछि।

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अध्ययनक एक टा पैघ स्रोत देवी-देवताक कथा आ गीत भ सकैत छल। मुदा देखब में आबैत छैक जे करीख, सोखा, गोरैया, गणीनाथ, सलहेस, दीना-भद्री आदि सब देवताक कथा आ गीत एके रंग भ गेल छैक। सांस्कृतिक आदान-प्रदान एवं आपसी पैंच-उधारी करैत-करैत प्रत्येक के अपन विशिष्टता धूमिल भ गेल अछि। एक टा आर अफसोसक गप्प अछि जे अखन तक भगत अथवा दलित-पिछड़ा समुदाय के पुजैगरि समुदायक विधिवत अध्ययन नहि भेल अछि।

 

भगत, डलवाह, पंजियार लोकनि ग्रामदेवताक परंपराक असली वाहक होइत छथि एवं देवी-देवताक खिस्सा, गीत, पूजा विधि आदि के ज्ञान रखैत छथि। जानकार भगत संग संवाद बहुत तरहक सूचना स्रोत भ सकैत अछि। एकर अर्थ ई नहि अछि कि झाड़-फूंक संबंधी दाबा के ओहि रूप में स्वीकार कय लेल जाय। मुदा ओ लोकनि लोकदेवताक धरातल के समझय लेल सब स महत्वपूर्ण स्रोत भ सकैत छथि, ताहि में संदेह नहि। आखिरी बात,एक ग्रामदेवता-कुलदेवता के उपासना प्रत्येक गाम आ परिवार में भिन्न-भिन्न स्वरूप में भ सकैत अछि।ओकरा अनावश्यक रूप स मानिकीकृत (standardise) आ समरूप (Homogenise)बनाबय के प्रयास नहि करय के चाही। यदि सबहक अवलोकन के मैथिली मचान पर नियमित रूप स पोस्ट एवं संकलित कायल जाय त विशाल सूचना कोश एकत्र भ सकैत अछि। सब उत्साही लोकक स्वागत अछि।

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