जानकी नवमी विशिष्ट व्याख्यान 2021 : श्री राम माधव

November 16, 2022 मिथिला CSTS
जानकी नवमी विशिष्ट व्याख्यान 2021 : श्री राम माधव

नमस्कार!
मेरा परिचय करते समय मेरे नाम के दो शब्दों का उपयोग किया गया| तो मैं मेरे व्याख्यान में प्रयास करूंगा जहाँ मैं जनक राजकुमारी की बात करूँ, वहां मैं पांचाल राजकुमारी का भी जिक्र करूँ| सबसे पहले जानकी नवमी के शुभ अवसर पर मैं आप सभी को ह्रदय से शुभकामनाएं देना चाहता हूँ|

आज इस जानकी नवमी के शुभ अवसर पर मां जानकी के व्यक्तित्व पर चर्चा-विमर्श करने के लिए इस कार्यक्रम का आयोजन हुआ है| आज मिथिला की बेटी भारत के स्त्रीत्व के प्रतीक के रूप में विद्यमान है| मां सीता को इतिहास में अनेक लोगों ने,अनेक विद्वानों ने उन्हें अनेक ढंग से देखने का प्रयास किया| किसी ने उन्हें व्यक्तित्व के आधार पर राम की अच्छी पत्नी और पतिव्रता के रूप में देखा| किसी उनको अबला कहा| किसी के लिए वह एक सुदृढ़ व्यक्तित्व थीं तो किसी के लिए फेमिनिस्ट| किसी ने उनके शक्ति के लिए उनकी माता पृथ्वी के समतुल्य रखा| जानकी के निमित्त अनेक व्याख्यान हमें देखने और सुनने को मिलते हैं| आज इस चर्च में हम ये जानने का प्रयास करेंगे की सीता कौन है?इसे किस दृष्टिकोण से देखना चाहिए?मैं एक दृष्टिकोण रखने का प्रयास करता हूँ! माँ जानकी भारतीय इतिहास के हजारों वर्षों में स्त्रीत्व के मूल्य के प्रतीक के रूप में आज भी हमारे सामने विद्यमान हैं| इस मूल्य को मैं सीतत्व कहता हूँ| “It is Sitahood that we should understand! It is Jankihood that we should understand!”

जब हम womanhood की बात करते हैं तो यह Sitahood है| यह Panchalihood है| यह Draupdihood है| इस जानकीत्व, सीतत्व,द्रोपदीत्व को समझने का प्रयास वर्तमान समाज को करना चाहिए| क्योंकि इतिहास के कालक्रम में मूल्य बदलते गए, और सामाजिक institutions के हाथों सामाजिक अनुशंसा के आधार पर morals बनते गए, नीतियाँ बनती गयी| इस तरह हम मूल्य के अपनी समझ और श्रद्धा को खोते गए| जानकीत्व, सीतत्व का महत्व उस बात में है| स्त्रियों के लिए जो सनातन मूल्य की दृष्टि है उस पर आज हम विचार करेंगे| त्रेतायुग की जब बात आती है तो कहा जाता है कि तब सब कुछ धर्म के आधार पर चलता था| यानी ना कोइ दंड देने को राजा था ना कोई गलत करने वाला प्रजा| सब का रास्ता धर्म का था| ना तो कोई धर्म का implemention करने वाला था ना कोई तोड़ने वाला| लेकिन उस समय स्त्री का महत्व पुरुष के समान था| पुरुष और महिला मिलकर एक पूर्णता होती है| जैसे प्राचीन चीन में जिन-यांग की परिकल्पना होती है, वैसे ही यहाँ पुरुष और महिला के साथ समग्रता की मान्यता रही है|हमारे वेद में 30 से अधिक महिलाओं का नाम आया है जिन्होंने अपना सहयोग दिया| वैदिक काल की एक स्त्री वाक् ने तो यहाँ तक कहा है कि-“ मैं ही इस राष्ट्र की सेवा करती हूँ| कोई भी वैदिक देवता यथा ब्रम्हा,विष्णु महेश को स्त्री शक्ति के बिना नहीं दिखाया गया है| वैदिक काल में कोई भी रिचुअल बिना स्त्री के पूरा नहीं होता था| सांख्य दर्शन में तो स्त्री और पुरुष को ही अंतिम सत्य माना गया है|

जब सीता का युग आता है जिसे त्रेतायुग माना गया है| त्रेता युग में पूर्व के धर्म के व्यवहार का तरीका बदल गया| स्त्री के सामाजिक स्थिति में ह्रास हो गया| यहाँ तो राम हमेशा सीता से जान छुडाते दिखते हैं| लेकिन सीता ने महलों में नहीं रही, पुरुष के साथ रहना ही सनातन धर्म है इसिलिए सीता महलों में ना रही। फिर जब रावण को जीत लिया राम ने फिर सीता को साथ रखने से मना कर दिया। उन्होंने बोला कि मैंने रावण को तुम्हारे लिए नहीं धर्म के लिए मारा। तो सीता ने राम से कहा कि जिसे तुम धर्म कहते हो वो ये काल धर्म है, युग धर्म है शाश्वत नहीं है। इस धर्म का निर्धारण कुछ सोसिअल institution ने निर्धारित किया है इस मोरल्स का निर्धारण किया है समाज के institution ने। लेकिन शाश्वत धर्म morals पर, सामाजिक नैतिकता पर नहीं चलते।

मित्रों हमारे सनातन संस्कृति में हमने मूल्यों को morals के ऊपर का दर्ज़ा दिया। morals चाहिये क्योंकि सामान्य व्यक्ति मूल्य को नहीं समझ सकते, लेकिन सीता राम से कहती हैं तुम तो सामान्य नहीं। सीता को राम ने दुबारा कहा कि तब जब मैंने तुम्हारा परीक्षा लंका युद्ध के बाद लिया था तब मुझे नैतिक मूल्य का पालन करना था अब मुझे राजधर्म का पालन करना है इसीलिए तुम चले जाओ। तब सीता का राम से प्रत्यक्ष बात नहीं हो पाती, क्योँकि राम ख़ुद सीता को ये कहने की हिम्म्त नहीं कर पाते और लक्ष्मण के साथ रथ से सरयु के किनारे भेज देते हैं। वहाँ जा लक्ष्मण कहते हैं कि ये मेरे भाई का आदेश है कि राजधर्म के पालन को आपका परित्याग करना है। लेकिन सीता मौन रहती है कि लक्ष्मण को क्या समझाना, उससे क्या विवाद करना।

लेकिन सीता जब दूसरी बार प्रवास में जाती है तो सीतत्व क्या होता है, वो value, महिला की dignity का value क्या होता है? महिला की शक्ति का value क्या होता है इसका परिचय लव-कुश के रूप में देती है सीता। इसीलिए जब राम को पता चलता है कि लव-कुश इतने पराक्रमी और इतने संपूर्ण समपन्न, इतने पढ़ें लिखे, इतने योग्य उन्हें आश्चर्य लगता है कि बनाया किसने इसे? इसे सीता ने बनाया। संत महात्मा ॠषि सब लगे थे एक छोटे से बालक राम को, राम विग्रहवान धर्म: और मर्यादपुरुषोत्तम राम बनाने में और लव-कुश को राम की तरह योग्य पुरुष बनाने का कार्य अकेली सीता ने किया था। अनादि काल में जिस रूप को हमारे वेद्कारों ,संत, ॠषि, महात्माओं ने समझा था उसका जीता-जागता परिचय दिया सीता ने।
इसलिए मित्रों मैं कहता हूँ कि रामो विग्रह्वान धर्म: का जो परिचय है राम का, इसे राम के दूसरे परिचय मर्यादा पुरुषोत्तम के साथ जोड़ कर समझना चाहिये। राम का जो धर्म की बात है इसे विग्रहवान धर्म कहते हैं ये धर्म युग धर्म था। युग धर्म जो त्रेतायुग का धर्म था उसके विग्रहवान धर्म थे। वे मर्यादपुरुषोत्तम थे। लेकिन ये मर्यादा तय किसने किया था? ये मर्यादाएं जिसे हम नीति कहते हैं हमारा समाज तय करता है| जहाँ तक सीता की बात हैं वे विग्रहवान मूल्य हैं| मैं कहता हूँ जहाँ राम विग्रहवान धर्म हैं वहीँ सीता को विग्रहवान मूल्य माना जाना चाहिए| मित्रों! जब सीता को समझते हैं ना इस बात का ध्यान रखना, अनैतिक तो नहीं बनना लेकिन नैतिकता के परे भी कुछ मूल्य होते हैं| समाज में नैतिकता के परे जो मूल्य होते हैं ना उन मूल्यों का निर्वाह विद्वान लोगों को करना चाहिए| सीता उन सनातन मूल्यों की प्रतिक थीं| जहाँ महिलाओं की सम्मान का प्रश्न होता था, महिला जैसे त्रेतायुग आते-आते शोषक वर्ग बन गयी| तब कोई राजधर्म, नैतिक धर्म के नाम पर भी छोड़ सकता था| सतयुग में तो स्त्री के बिना पुरुष की पूर्णता थी ही नहीं| सीता उस पूर्णता का परिचय राम को भी दे रही थी और राम के रूप में अन्य को भी दे रही थी| त्रेता के बाद जैसे ही द्वापरयुग आया इस मूल्य का और क्षरण हुआ| द्वापर में तो स्त्री commodity बन गयी जो आज भी चल रहा है| द्रोपदी को शर्त में लगा दिया गया कि मैं पत्नी को बेच भी सकता हूँ| फिर कृष्ण को उतरना पड़ा महिला के dignity की रक्षा के लिए|

इसीलिए कृष्ण का अवतार राम से भिन्न है, राम सामान्य नैतिक मूल्य के पालन करने वाले के रूप में हैं वहीँ कृष्ण द्वापरयुग में वैदिक सनातन मूल्यों की रक्षा करने वाले एक भगवान के रूप में अपने कर्तव्य का पालन करते हैं| वे द्रोपदी के साथ खड़े होते हैं| कृष्ण की जो दृष्टि विशिष्ट थी वो महिला के व्यक्तित्व को दुनिया के सामने लाना चाहते थे| जब युद्ध टलने का वक्त आता है, जब दुर्योधन पांच ग्राम देने की बात कृष्ण के सामने रखते हैं कि ये गाँव ले कर पांडव रहे| अगर ये बात कृष्ण धर्मराज के सामने रखते तो वो तैयार हो जाते क्योंकि वे तो युद्ध के पक्ष में थे ही नहीं| इसलिए ये बात कृष्ण ने द्रोपदी से कही तो इस पर द्रोपदी ने कहा कि मेरे निर्लज्ज पति ये लेना चाहते हो तो ले लें लेकिन मुझे जब तक दुर्योधन का खून लाकर नहीं दिया जाता तब तक मैं अपना केश नहीं बांधुंगी| द्रोपदी की उस आग्रह के चलते बाद में युद्ध होता है| कृष्ण उस व्यक्तित्व को दुनिया के सामने लाना चाहते थे|

युद्ध विराम के बाद जब शांति पर्व हो रहा था तो युधिष्ठिर के साथ द्रोपदी भीष्म पितामह से मिलने जाती है, भीष्म पितामह बाण शैया पर थे| वे पितामह से धर्म की शिक्षा सीखने जाते हैं| जब द्रोपदी वहां से गुजरती है तो उनकी बात सुनकर हँस देती हैं| किसी वृद्ध के सामने महिलाओं का हँसना वो भी तब, जब वो मृत्यु शैया पर हों हमारे समाज में बुरा माना जाता है| इस पर युधिष्ठिर उन्हें डांटते हुए कहते हैं ये क्या कर रही हो? यहाँ क्यों हँस रही हो? इस पर भीष्म पितामह युधिष्ठिर को रोकते हैं कि द्रोपदी की हँसी जायज है| क्योंकि जब द्रोपदी की साड़ी भरी सभा में खिंची जाती थी उस समय मैं कुछ नहीं कर सका क्योकि मेरा दास धर्म महिला के सम्मान से बड़ा बन गया था| द्रोपदी उस बात पर हँस रही है कि क्या मैं राजधर्म बता सकता हूँ? राजधर्म जो कि इस वर्तमान धर्म से परे है जिसमें महिला सम्मान की बात है उसको सिखाने की योग्यता मेरे में है क्या? इस बात पर वो हँस रही है उसकी हँसी जायज है|

मित्रों सीता और द्रोपदी को हमें इस दृष्टि से देखना चाहिये, जिनके लिए सम्मान और स्वाभिमान सभी नीतियों और कालधर्म से परे है| मैंने पहले भी कहा कि इसका मतलब ये नहीं की अनैतिक हो जाना है| महिला का जो सम्मान है, स्त्रीत्व है उसकी तरफ उपेक्षा नहीं करनी चाहिए| और जब कलयुग में हमने प्रवेश किया है तो उन मूल्यों के क्षरण में हम पराकाष्ठा देखते हैं, जिसमें महिला विलासिता की वस्तु है, एक commodity है|दो extreme परिकल्पनाओं में आज महिलाओं को हमने छोड़ा है| जब जानकी द्रोपदी की याद करते हैं| हमारे लिए दोनों प्रकार के extreme से परे महिलाओं के सम्मान का प्रश्न है| जिसके लिए जानकी और द्रोपदी ने संघर्ष किया था| जिसके लिए उन्हें इतिहास में उच्च स्थान दिया है|इसका मैं एक दो उदाहरण मैं आपको देता हूँ-राजा जनक के दरबार में याज्ञवल्क्य और गार्गी का ब्रम्ह पर संवाद होता है|दोनों मिथिला के हैं| एक समय ऐसा आता है जब याज्ञवल्क्य गार्गी को याद दिलाते हैं कि गार्गी तुम अब प्रश्न पूछने के उस सीमा तक पहुँच गयी हो हो जिसके उपर कोई प्रश्न ही नहीं है, सिर्फ ब्रम्ह है,जिसे महसूस किया जा सकता है|क्या आज हमारे घर में महिलाओं को प्रश्न पूछने का अधिकार है? शंकराचार्य मंडन मिश्र के घर गए| मंडन जानते थे कि शंकराचार्य अद्वैत के प्रकांड विद्वान हैं| मंडन अद्वैत को नहीं मानते थे| शंकराचार्य को पता होता है कि वो शास्त्रार्थ के लिए नहीं तैयार होंगे तो भिक्षा में शास्त्रार्थ मांगते हैं| न्यायमूर्ति के रूप में मंडन की पत्नी भारती बैठती है| मंडन मिश्र हार जाते हैं भारती मानती है कि मंडन मिश्र हार गए| लेकिन भारती शंकराचार्य से कहती हैं कि सिर्फ मेरे पति को हराने से नहीं होगा| इतिहास में लिखा गया है कि काम विद्या पर शास्त्रार्थ होता है| शंकराचार्य तो ब्रम्हचारी थे तो वे कश्मीर के मरे हुए एक राजा के शरीर में प्रवेश करते हैं और उस शरीर से शिक्षा प्राप्त कर भारती देवी से जीतते हैं| हमने ये दर्जा इतिहास में स्त्रियों को दिया है|चर्चा कभी नहीं हुआ कि पति हारा, पत्नी जीती| क्योंकि बात महिलाओं के सम्मान की थी|हमारी संस्कृति में उनको ऊँचा दर्जा दिया गया है|आज इस बात को समझ हमें महिला वर्ग से व्यवहार करना होगा|

पाश्चात्य की बात मैं नहीं कर रहा, उसका मूल्य ही गलत था| होमर का जब इलियड पढ़ते हैं तो वहां हेलेन का जो वर्णन है, वहां वो सच में अबला थी| वो कहती हैं- I’m helpless. मुझे पेरिस राजा के पास जाकर सोना ही पड़ेगा|सेमिटिक साइट्स में इव की जो वर्णन हुई है वो एकदम वर्तमान काल तक आज एक सेमिटिक रिलिजन का व्यक्ति विषम प्राणी ही मानता है जिसने दुनिया को खराब किया| क्या किया इव ने? आदम को एक forbidden फ्रूट खाने के लिए प्रेरित किया| आज तक 2000 वर्ष बाद भी पाप माना जाता है| मूल्य ही गलत था लेकिन हमें इस व्याख्या में नहीं जाना| उस समाज के लिए वो मूल्य थे इसीलिए वहां बहुत बड़ा फेमिनिस्ट आन्दोलन चलाना पड़ा,मूल्य बदलने के लिए आदोलन चलाना पड़ा| जीन एंडरसन,ऑस्ट्रेलियाई फेमिनिस्ट कहती हैं कि-‘ हमारे लिए समस्या यह नहीं है कि महिला सशक्त है कि नहीं है बल्कि पुरुषों को इस बात को मानने के लिए प्रेरित करना यही फेमिनिजम का चैलेंज है|’
पर हमारे यहाँ मूल्य सही है हमने यह माना है की स्त्रीत्व जो है वो ऊँचें दर्जे का है पर समय के साथ हमारे morals और पाश्चात्य morals ने मिलकर जो व्यवस्था का जो निर्माण किया वो morals तो बन गए लेकिन dignifiy नहीं रहे महिला के लिए| मित्रों आज संघर्ष उन dignity का है| कानून अनेक बन सकते हैं बनना भी चाहिए महिलाओं की सुरक्षा कानुन को करना ही है| कानून बनना है पर कानून से परे व्यक्ति को महिलाओं के प्रति सम्मान का अभ्यस्त करवाना पड़ेगा| एक मानसिक दृष्टि देना पडेगा| देखिये! एक शब्द हम बहुत rudely प्रयोग कर लेते हैं हम देखते हैं कि जब कोई पुरुष गलत रास्ते पर होता है तो उसके लिए बोलते हैं कि वो भुवनेंद्र है| भुवनेंद्र क्या होता है? यानि हर महिला के लिए हमारा दृष्टि यही है कि वो पतित है और केवल पुरुष उस पतित महिला को use कर रहा है| सोच में ही ये है कि woman एक infidel प्राणी है और उनके साथ व्यबहार करने वाला भुवनेंद्र है| यह सोच को बदलना होगा, इस शब्दावली को बदलना होगा| तभी जाकर स्त्री को सम्मान का दर्जा मिलेगा| आज हो जाता है पूजा करने की बात| बालिका पूजन होता है| अच्छा है| लेकिन क्या ये rituals है? मैं यहाँ मंच से पूछना चाहता हूँ कि कितनी महिलाएं सोचती हैं कि उनके पति या अन्य पुरुष आ कर उनको पुष्प चढ़कर पूजा करें!

वो वे नहीं चाहते,वे चाहते हैं कि भाई जीवन में सम्मान तो दो, एक तो मुझे विलास की वस्तु के रूप में मत देखो और दूसरा कि मुझे किचन के लिए बंधित व्यक्ति मत बना दो| मुझे एक महिला के रूप में अस्तित्व और उसका सम्मान दो| जानकी पांचाली का जीवन ये कहता है | उस जानकीत्व को उस सीतत्व को हमें हमारे समाज में वापस लाना है| इस जानकी नवमी के अवसर पर उस पर गहरी चर्चा हो ऐसी मैं अपेक्षा करता हूँ| मेरे विचारों में कुछ विचार यहाँ के विद्वानों को नहीं जंचता हो तो वो मेरे अज्ञान का ही रूप समझें | इसी के साथ मैं अपनी वाणी को विश्राम देता हूँ, नमस्कार|

नोट: यह आलेख MLF–2021 में जानकी नवमी के अवसर पर श्रीमान राम माधव जी के दिए गए दिनांक 21.05.2021 के वक्तव्य का शब्द रूपांतरण है| CSTS टीम के सदस्य कुमार अम्बिकेश ने इसे यथासंभव वैसे ही लिखने का प्रयास किया है जैसा कि श्रीमान राम माधव जी ने अपने व्याख्यान में बोला था, लेकिन फिर भी नि:संदेह त्रुटि की संभावना है|कृपया अशुद्धियों को नजरअंदाज करें|

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श्री राम माधव एक राजनीतिज्ञ, लेखक और विचारक हैं| वे वर्तमान में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ(RSS) के राष्ट्रीय कार्यकारिणी शक्ति के सदस्य हैं| पूर्व में बीजेपी के नेशनल जनरल सेक्रेटरी रह चुके हैं| श्रीमान माधव जी ने कई अंग्रेजी और तेलुगु भाषा में पुस्तकों का सृजन भी किया है| जिसमें उनकी हालिया प्रकाशित किताब है ‘Because India Comes First: Reflections on Nationalism, Identity and Culture.’ The Indian Express और Open Magazine सहित कई प्रकाशनों के लिए लिख चुके हैं|वह अंग्रेजी की मासिक “भारतीय प्रांगन” के संपादक है और साप्ताहिक तेलुगु पत्रिका “जागृति” के सहायक संपादक हैं| श्री राम माधव जी ने 30 से अधिक देशों की यात्रा की है और कई अंतर्राष्ट्रीय कार्यक्रमों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है|

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