"भुईयाबाबा" (तिरहुत के लोक देवता)

November 16, 2022 धर्म-आस्था अभिषेक कुमार राय
“भुईयाबाबा” (तिरहुत के लोक देवता)

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अनादिकाल से तिरहुत ऋषि मुनियों, तपस्वियों ,वीरों , ज्ञानियों की भूमि रही हैं, यहां सभी जातियों की अलग – अलग लोकदेवताओं की पूजा होती हैं, उन्ही में से एक हैं “भुइयां बाबा” इनकी काल 14 शताब्दी बताई गई हैं, इनकी पूजा में मुख्य रूप से तीन व्यक्ति की पूजा होती है “बाबा बसावन , बाबा बख्तौर, मां गहिल”,
बाबा बसावन वैशाली जिला के लंगा बसौली ग्राम के थे, इनका वास्तविक नाम बसावन खिरहर था और बाबा बख्तौर तिरहुत के उत्तरी भाग कोई गढ़िया रसलपुरबके थे,इनका वास्तविक नाम आंसिक बख्तौर और इनके पिताजी का नाम पुरन राउत मां कोयला थी। बाबा बसावन और बाबा बख्तौर परम मित्र थे,

उसी युग में नारी महथि डेहुरी दरबार के राजा “दलेल सिंह”था जो अत्यंत क्रूर और निर्दई था,जो राज्य के सभी नागरिकों पर बहुत अत्याचार करता था,राजा दलेल सिंह एक लाख मुशहर जाति के लोगों का नरसंहार करने का कठोर फैसला किया हुआ था, बाबा भुइयां क्रूर दलेल सिंह के प्रकोप से राज्य के सभी नागरिकों का रक्षा किए थे और राजा से युद्ध करके 52 कोश के गोरिया वन पर विजय प्राप्त किए थे और समाज को शोषण से मुक्त कराए थे।

इस पूजा में मनारिया द्वारा कहे गए कथा (गायन शैली) अनुसार माता कोईला ने अपने विवाह के समय अपनी कुलदेवी गहिल मां(शक्ति) को अपने आंचल में ले कर अपनी ससुराल आ गई थी,जिनसे उनके भाई “बदल सिंह” अत्यंत क्रोध में थे।

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गहवर,वैशाली

मामा बदल सिंह अपनी कुलदेवी को मानने के लिए अपने घर में एक बहुत बड़ी अनुष्ठान किए थे , समस्त गढ़िया ने निमंत्रण दे दिए थे लेकिन अपनी बहन को इससे वंचित रखे थे,जब बाबा बख्तौर बोरिया वन की चिकनी घाट पर अपनी भैंस चरारहे थे तभी उनकी कान में मानर (क्षेत्रीय वाद्य यंत्र) की अनुराग सुनाई पड़ गई,जो नरहर नदी उनके मामा के घर “डिह सतौरा”में बज रही थी, उन्होंने अपने तंत्र साधना से यह पता कर की यह अनुष्ठान उनके मामा के घर में हो रही है,जिससे वह अत्यंत क्रोधित हुए।

उन्होंने अपने घर आ कर अपनी मां से अनुमति मांगी अपने मामा घर पूजा देखने जाने के लिए, परंतु माता कोईला में मना कर दिया यह कहकर कि बिना निमंत्रण तुम वहां मत जाओ, तुम्हारा आदर सम्मान नहीं होगा, परंतु बाबा बख्तौर अपने जिद्द पर अड़े रहे अंतिम में उनकी मां ने उन्हें अनुमति दे दिए और उन्हें पान और कुछ खाद्य सामग्री दे कर कहा कि वह तुम दूर बैठ कर पूजा देख लेना और इसे खा कर चले आना पूजा की प्रसाद ग्रहण नहीं करना।

जब उन्होंने अपने ननिहाल पूजा देखने पहुंचे तो वहां उनके मामा द्वारा उनका अपमान किया गया,जिसके क्रोध से बाबा बख्तौर ने पूजा भंग कर के वापस बोरिया वन घूम कर चले आए ।

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तब उनके मामा बदल सिंह और नारी महथि के राजा दलेल सिंह ने तांत्रिक गुणों से उत्पन्न शेला बाघ और लुलिया बाघिन को भेज दिए बाबा बख्तौर की मार डालने केलिए
बोरिया वन में बाबा बख्तौर उनके भैसों संग दोनों बाघ और बाघिन कि युद्ध हुआ जब भैंसो ने अपने सिंह से बाघों पर प्रहार करता तो उसका प्राभाव बाघों पर नहीं बल्कि बाबा बख्तौर पर पड़ता अंत में दोनों बाघ बाघिन ने बाबा बख्तौर को मार डाला ,किसी सामान्य बाघ बाघिनों से उनकी मृत्यु असंभव थी क्योंकि बाबा बख्तौर के पास खुद 7 भैंसो की शक्ति थी,उनकी मृत्यु पश्चात उनकी स्त्री हीरा मोती को यह पता चल गया कि उनकी सुहाग अब इस भूलोक में नहीं हैं क्योंकि हीरा मोती स्वयं एक सत्यवती स्त्री थी।

इन्हें लोक देवता की ख्याति प्राप्त हुई सभी जातियों मान सम्मान प्राप्त हुआ ,बाबा भुइयां समाज सुधारक गौ रक्षक पशु पालक थे,उनकी कथा की गायन शैली जो मनरिया द्वारा गाया जाता है उसका कोई और जोर नहीं हैं।।


 

बाबा भूइया (तिरहुत केर लोक देवता)

 

तिरहुत में सब जातीके अनेक लोक देवताके पुजा होई छै , सेहे मे एक गोटे भूइया बाबाके पूजा सेहो होई छै, हिनकर काल 14 शताब्दी बताएल गेल हय, पूजा में मुख्य रूपसे तीन गोटे केँ पूजा होएत छइ बाबा बसावन , बाबा बखतौर, माँ गहिल के!
बाबा बसावन वैशाली जिलाके बसौली लंगा के रहथिन हिन्कर वास्तविक नाम बसावन खिरहर रहैन्ह आऽ बाबा बखतौर तिरहुत के उत्तर अङ्ग कोनो गढ़ीया रसलपुर के रहथिन हिनकर नाम आंसिक बखतौर रहैन्ह आ बाबुजिके नाम पूरन राउत रहैन्ह माँ कोइला रहथिन!
ताही युग में नारी महथि डेहुरी दरबार के राजा ”दलेल सिंह” रहैन्ह जे अत्यंत क्रुर आऽ निर्दय रहइ जे समाज केर लोक सब पर बड़ अत्याचार करैत रहइ,राजा दलेल सिंह एक लाख मुश्हर जातिक लोक सबके हत्या करेबाक निश्चय कएले रहइ , बाबा भुइयां राजा दलेल सिंह के प्रकोप से सगर समाज के रक्षा कएले रहथि आऽ दलेल से युद्घ करी के 52 कोस के गोरीया वन पर विजय प्राप्त कयले रहथिन एवम समाज के शोषण से मूक्त करयलन!

 

 

एही पूजा में मनरिया द्वारा कहल गेल कथा अनुसार माता कोईला विवाह समय अप्पन खोइछा में कुलदेवी””गहिल ”
के लय के अप्पन सासुराल आएल रहथिन जाहि कारणे हुंनक भाई ”बदलसिंह” क्रोध मे रहथिन!
मामा बदल सिंह अप्पन कुल देवी में मनाबे लेल अप्पन घर में अप्पन नाम सँ पूजा कएले रहथिन, सगरो गढ़िया में न्योत हकार दय देलखिन्ह मुदा न्योत अप्पन बहिन घर नहि पठओलन, जखन बाबा बखतौर अप्पन खैरा (भैस) के बोरीया वन में चिक्नी घाट पर चरबैत रहथिन तखन हुनका कान मे पड़ी गेल मानर के अनुराग जे मामा बदल सिंह नरहर नदी पार डिह सत्औरा में कराबैत रहलन!

“बाबा बखतौर माए कोइला के कहलनजे हम पूजा देखे जाएब हमरा चद्दर लाठी दे , हुनकर माय मना क देलखिन्ह जे बउआ तु बिनु न्योत & हकार के पूजा देखे नय जा तोरा मान सम्मान नय होतौ , बाबा बखतौर जिद्द् पर आ गेलखिंह जे हम पूजा देखे जय्बे करब तखनि माई कोईला हुनका चद्दर के खुट के पान आऽ किछ खाय लेल समाग्री बान्ह देलखिन्ह जे तु पूजा के कोनो प्रसाद नइ खईअह”
जखनी बाबा पूजा देखे अप्पन मानिहाल गेलखिन ओतही हुन्कर अपमान कएल गेल बाबा बखतौर पूजा भङ् करी बोरिया वन घुरी चली अलखिन्न तखने बदल सिंह & दलेल सिंह सर्यंत्र करी तांत्रिक गुण से तैयार शेला बाघ & लुलिया बाघिन से हुन्कर हत्या करवा देलखिन्ह!
किएक त सामान्य कोनो बाघ & बाघिन से हुनकर हत्या सम्भब नय रहइ हुनका असगरे 7 भैसा के शक्ति रहइ, हुन्कर मृत्यू होईते हुनकर कनिया हिरा मोती के संदेश प्राप्त भ् गेल रहैन्ह किएक त हीरा मोति अपने एक गोट सत्वर्ती स्त्री रहथिन
हुनका लोक देवताक ख्याति प्राप्त भेल आ सब जाति में मान सम्मान भेटल , भुइया बाबा समाज सुधारक सेहो रहथिन एवं पशु रक्षक सेहो रहथि हिनक कथा के रस मात्र मनारिया द्वारा गायल गेल में हि भेटत जकर कोनो परतर नहीं।


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