कोरोना काल के बाद विश्व के विभिन्न भोज्य पदार्थों के गुण दोष और उनके खास निरोगी अवयवों की पुनरव्याख्या बेहद आवश्यक जान पड़ रहा है । वहीं इस अभूतपूर्व भय और अकालमृत्यु के आशंका ने भोजन को लेकर एक नई जिज्ञासा पैदा की है: आखिरकार किन वस्तुओं का सेवन आपको रोगमुक्त और एक स्वस्थ जीवन दे सकता है, प्रथम विश्व युद्ध के बाद ऐसे ही वातावरण ने सुपरफूड के कान्सेप्ट को जन्म दिया था और फूड मार्केटिंग की एक नई प्रथा चल पड़ी थी, रोचक बात यह है कि ये बातें वैज्ञानिक आधार के बिना प्रचारित किये गए थे।
नए वैश्विक संजाल में प्रचारित खाद्य पदार्थों को लेकर अचानक उगने वाले इन कुकुरमुत्ते जैसे धारणाओं ने यह चुनौती दी कि अब आपको सुपर फूड खाना चाहिए अगर आप चेतन, सभ्य और स्वस्थ रहना चाहते हैं। मगर कोरोना से हुए मृत्युक्षति को देखने से विकसित देशों का सुपरफूड से अमरत्व का दावा कमजोर साबित हो रहा है ऐसे में भोजन और जीवनपद्धति उसी की श्रेष्ठ मानी जाएगी जो कोरोना महामारी से लड़ने की बेहतर क्षमता रखता हो। इस सुपरफूड पर एक साधारण इंटरनेट सर्च आपको दस मिलियन रिजल्ट दिखाता है ।
पौष्टिकता, मोटापा घटाने और रोग भगाने की क्षमता, साथ में लंबी आयु की दावा करता यह सुपरफूड अभिजात्य वर्ग का नया जुनून है । ऐसे में यह अवलोकन आवश्यक है कि यह सिर्फ फर्स्ट वर्ल्ड या विकसित देशों का ही चोंचला है क्यूंकी एक तो अंग्रेजी के सिवा आपको और किसी भी क्षेत्रीय भाषा आपको सुपरफूड ऑफर या पैकेज घोषणा नहीं नजर आएगा तो क्या वाकई सदियों से विश्व की इतनी अलग अलग समुदायों ने जो इतना विकसित साहित्य, दर्शन, इतिहास, विज्ञान और भाषा के साथ साथ लोक परंपराओं को लेकर लंबी आयु और स्वस्थ रचनात्मक मानसिक स्वास्थ्य के साथ चलती आ रही है उनका अपना कुछ भी तथाकथित सुपरफूड की श्रेणी में नहीं है/ था या नहीं? ।
इस आलेख में एक सांस्कृतिक समृद्ध प्रदेश मिथिला में प्रयोग किए जाने वाले खाद्य पदार्थ इस नई चुनौती पर खड़े उतरते हैं या नहीं, की पड़ताल की जा रही है ।
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मिथिला का क्षेत्र अपनी संस्कृति और जीवनयापन के संतुलित तरीकों से हमेशा से ही आकर्षण का केंद्र रही है यहाँ तक की प्रसिद्ध स्मृतिकार याज्ञवल्क्य ने तो यहाँ तक कह दिया कि धर्म की परिभाषा समझनी हो तो मिथिला के व्यवहार की तरफ देखें, पर यह व्यवहार क्या है और इसको कहाँ लोकेट किया जाए? व्यवहार दैनिक आचरण के मानसिक, शारीरिक, भौतिक, मनोवैज्ञानिक और धार्मिक आचरण से उत्पन्न सकल जीव जगत के प्रति दृष्टिकोण कहा जा सकता है।
ऐसे में भोजन जो जीने और जीवन का एक प्रमुख अवयव है उसे आप बनाते, परोसते खाते समझते और प्राप्त कैसे करते हैं यह एक सभ्य समाज का नियामक व्यवहार माना जाएगा और इस मामले में मिथिला की खाद्य संस्कृति काफी महीन और विषद रही है।
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पारंपरिक और लोकप्रिय व्यवहार में मैथिल भोजन:
मिथिला के भोजन और भोज विन्यास का वर्णन जग विदित है, पुराने मैथिल ग्रंथों में ज्योतिरीश्वर ठाकुर(ग्यारहवीं सदी) ने वर्णरत्नाकर में तत्कालीन खान –पान पर प्रकाश देते हुए प्रमुख भोजन भात ,दाल, तरकारी ,चूडा ,दही ,शक्कर ,फल और दूध कहा है | दूसरे पुस्तक प्राकृति-पैँगलम् में वो कहते हैं कि ‘वो गृहणी धन्य हैं जो अपने पति को केले के पत्ते पर भात और घी का भोजन कराती हैं’। इस ग्रन्थ में मछली और तरकारी बनाने की विधियां भी लिखी हैं । वर्णरत्नाकर में दही के प्रधानता पर:
“ एगारह आँगूर वरली परलि,
कांचे कर्पूरे लेसन देल सन दधि .
शरतक पूर्णिमाँ चन्द्रमा प्रायः
अमृत जिन सवादे दर्शने पवित्र देषु ।”
कटइते कांति,
टुटिइते कँपति,
पात्र देखिते ब्यभति,”
अपने नाटक धूर्तसमागम में भी भोजन पदार्थक विविध प्रकारक वस्तु की चर्चा की है । ग्रंथकार विद्यापति भी अपने गीतों में खीर ,घोरजाऊर और मधुपर्क की चर्चा की है । वैसे लोकप्रिय फकरों में ऐसा कहा गया है कि
“मिथिलाक भोजन तीन,
कदली, कबकब, मीन”
यानि कि मिथिला में केला ओल, खमहारू (ओल की ही प्रजाति का)और मछली ही मुख्य भोजन हैं। वैसे व्यवहार में दही-चूड़ा, माछ-भात तीसी-सजमनि, माछ-मरूआ, जौ,दही, साग,तिल, गुड, घेरा,झिमनी,भाँटा, बड़ बड़ी आदि भी हैं । वैसे खाने पीने को लेकर कुछ निषेध भी प्रचलित हैं :
सावनक साग नै भादवक दही
आसिनक ओस नै फागुनक मही
माघक मिसरी नै फागुनक चना
अगहनक जीर नै पूसक धनी
चैतक गुर नै बैशाखाक तेल
जेठाक चलाव नै असाढ़क बेल
कहे धन्वंतरि अहि बचे
बैदयाराज काहे पुड़िया रचे
और भोजन के बाद मुखशुद्धि में मुख्यतः पान सुपारी प्रचलित है।
आइए अब कुछ सुपरफूड(स्वास्थ्यवर्धक) की श्रेणी में रखे जाने वाले कुछ व्यंजनों की जानकारी लेते हैं :
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*मैथिल सुपर फूड :
- तीसी( अलसी, चिकना) linseed
- *व्यंजन: सजमनी(कद्दू) +तीसी,
- *तीसी की चटनी,
- *तिसियौरी
- *तीसी कटहर
क्रमशः
- मडुआ(रागी)
- तिलकोर,
- पान,
- मखान,
- मुनिगा(सहजन)
- तिल,
- गुड़,
- कद्दू ,
- कदीमा,
- बैगन,
- अलहुआ,
- कठर
- सुथनी
- खमहारू