शास्त्र ज्ञान के साथ मिथिला की संस्कृति में खेल का प्रमुख स्थान रहा है I प्रमुख घरों के फर्श पर चौपड़ या फिर शतरंज का बोर्ड बनाया जाता था I विवाह के बाद कोजगरा के भार में कन्या पक्ष के तरफ से खेल की सामग्री, जैसे पच्चीसी और शतरंज भेजी जाती थीI अधिकतर गाँव में कुश्ती के लिये अखाड़ा होता था I नये खेलों के प्रति भी मिथिला के लोगों में उत्साह होता था I मिथिला की ह्रदय स्थली दरभंगा कभी खेल सिटी के रूप में जाना जाता था I कुश्ती , कबड्डी , निशानेवाजी , फुटबॉल , लॉन-टेनिस , टेबल टेनिस , शतरंज , पच्चीसी , पोलो , बिलियर्ड , घुड़सवारी ,स्क्वाश जैसे खेलों को राज दरवार से संरक्षण प्राप्त था I दरभंगा में आधुनिक खेलों का प्रदुर्भाव महाराजा लक्ष्मेश्वर सिंह और उनके छोटे भाई महाराज रमेश्वर सिंह के समय हुआ जो कालांतर में महाराज कामेश्वर सिंह और महाराजकुमार विश्वेश्वर सिंह के समय शीर्ष पर रहा । । राजा बहादुर विश्वेश्वर सिंह पोलो , फ़ुट्बॉल , टेनिस , घुड़सवारी , निशानेवजी , कुश्ती के उच्च कोटि के खिलाड़ी के साथ उसके संरक्षक थे I खेल के प्रोत्साहन हेतु दरभंगा में खिलाड़ियों को सभी तरह की सुविधा उपलब्ध करायी जाती थी I दरभंगा के प्रमुख खेल- मैदान जैसे राज मैदान , विश्वेश्वर मैदान , पोलो मैदान , कैदरबाद ,दरभंगा मेडिकल कॉलेज ग्राउंड के अतिरिक्त नरगोना, रामबाग, बेला पैलेस में टेनिस कोर्ट , इंडोर गेम, और अन्य खेलों की व्यवस्था थी I दरभंगा राज की लोहट , सकरी चीनी मिल तथा अशोक पेपर मिल , थलवाड़ा में भी खेल के सुंदर प्रांगण और खेल को प्रोत्साहित करने के लिये क्लब थे ।
दरभंगा शील्ड (बीसवीं सदी में आई.एफ.ए संबद्ध टूर्नामेंट घोषित किया गया ) : दरभंगा शील्ड प्रसिद्ध टूर्नामेंट जैसे कूच बेहर कप, लेडी हार्डिंग शील्ड, विलियम यंगर कप, आई.एफ.ए शील्ड का हिस्सा था I मोहन बगान ने 1933, 1934 में ये ख़िताब अपने नाम दर्ज़ कियाI
खेलों का राजा पोलो में 1933 में दरभंगा कप की शुरुआत हुई थी, जो आज कलकत्ता पोलो क्लब के द्वारा संचालित की जाती है I पोलो के सभी प्रतिष्ठित प्रतियोगिता, जैसे- कारमाइकल कप, एजरा कप, आदि में दरभंगा की टीम भाग लेती थी I महाराज कामेश्वर सिंह, राजा विश्वेश्वर सिंह, जी . पी . डैन्बी , कैप्टन माल सिंह जैसे खिलाडियों के खेल कौशल से दरभंगा टीम कारमाइकल कप जीती थी । इस जीत की चर्चा देश - विदेश की पत्र - पत्रिकाओं में हुई थी I परंतु दरभंगा में पोलो अब अतीत की बात हो गयी हो I लहेरियासराय स्थित पोलो मैदान का नाम बदलकर नेहरु स्टेडियम कर दिया गया है , परन्तु अभी भी लोग पोलो मैदान के नाम को भूले नहीं हैं और जो हमें अपने गौरवशाली अतीत की याद दिलाती है I
लोकप्रिय खेल फुटबॉल में दरभंगा शील्ड और महाराज कुमार विशेश्वर सिंह फुटबॉल चैलेंज कप देश स्तर पर नामी प्रतियोगिता थी I दरभंगा शील्ड भारतीय फुटबॉल एसोसिएशन्स से सम्बद्ध प्रतिष्ठित टूर्नामेंट थी जिसमे देश के शीर्ष टीम मोहन बगान और ईस्ट बंगाल का अक्सर मुकाबला होता था I दरभंगा शील्ड के एक मैच की चर्चा आज भी फूटबाल जगत मे होती है जिसमे 1930-40 दशक के मशहूर फुटबॉल और क्रिकेट ख़िलाड़ी अमिया कुमार देव ने फाइनल और सेमी फाइनल में 4 गोल किये थे
कलकत्ता फुटबॉल लीग के डर्बी मैच से पता चलता है कि दरभंगा भी इन प्रतिष्ठित मैचों के आयोजन स्थलों में से एक था।
और मोहन बगान 4-1 से जीता था I 20 सितम्बर 1935 में दरभंगा के यूरोपियन गेस्ट हाउस (वर्तमान गाँधी सदन) में मोउनुल हक की अध्यक्षता में इंडियन फुटबॉल एसोसिएशन की स्थापना हुई थी जिसमे महाराज कामेश्वर सिंह संरक्षक और राजा बहादुर विशेश्वर सिंह सचिव मनोनीत हुए थे I दरभंगा के राज मैदान और विशेश्वर मैदान में अक्सर मैच का आयोजन होता रहता था I देश के नामी टीम यहाँ खेलने आती थी I दरभंगा स्पोर्टिंग क्लब और राज स्कूल की टीम यहाँ प्रतिदिन अभ्यास करती थीI खेल देखने के लिये लोग उमड़ पड़ते थे I हरियाली से अच्छादित मनोरम राज मैदान, जिसके पश्चिम में राजकिला की ऊँची दिवार, दक्षिण मध्य में भव्य इंद्र भवन, उत्तर मध्य में भव्य तोरण द्वार और चारों ओर सड़क और पेड़ इस मैदान की खूबसूरती बढ़ाते थेI दर्शकों की तालियाँ ऊँची किला की दिवार से प्रतिध्वनित होकर काफी देर तक ख़िलाड़ी के हौसला अफजाई करती थीI
मोहन बगान बनाम ईस्ट बंगाल (1934 दरभंगा शील्ड सेमीफ़ाइनल): मोहन बगान ने 4-1 से जीत दर्ज़ किया I
भारत के दो लोकप्रिय खेल- पोलो और फुटबॉल के नाम पर दरभंगा कप और दरभंगा शील्ड के साथ घुड़दौड़ में टर्फ क्लब के अधीन दरभंगा रेस की शुरुआत 1930 के दशक में की गयी थी जिसमे देश – विदेश की टीम भाग लेती थी I क़ुस्ती के खेल में भी दरभंगा का दबदबा थाI प्रत्येक पर्व-त्यौहार के अवसर पर दंगल का आयोजन किया जाता थाI लोहना का भुयां अखाड़ा (वर्तमान- भुयां स्थान) में आज एक प्रसिद्ध मंदिर है I उस ज़माने के पहलवान दुखहरण झा ,फुचुर पहलवान , फूलो राय का बड़ा नाम थाI दुखहरण झा रुस्तमे हिन्द मंगला राय के शिष्य थेI उनके सम्बन्ध में कहा जाता है कि उन्होनो दारा सिंह को कुछ हीं मिनटों में पछाड़ दिया थाI दरभंगा के दंगल का जिक्र राष्ट्रीय स्तर पर मिलता है I 1938 में बंबई (वर्तमान मुम्बई) में एक अंतर्राष्ट्रीय दंगल हुआ, जिसमें रूमानिया, हंगरी, जर्मनी, तुर्की, चीन, फिलिस्तीन आदि देशों के मल्लों ने भाग लिया। इस प्रतियोगिता में जर्मनी के मल्ल क्रैमर ने अजेय गूँगा को परास्त कर भारत को चकित कर दिया, किंतु उसे दरभंगा में पूरणसिंह बड़े से हार माननी पड़ी थी I
दरभंगा के संस्कृति मे खेलकूद इतना रच बस गया था कि युवराज जीवेश्वर सिंह के यज्ञोपवित के अवसर पर बांटी गई निमंत्रण कार्ड पर संगीत –नाटक आदि के साथ खेलकूद के आयोजन का भी जिक्र था, जिससे स्पष्ट होता है कि मिथिला के संस्कृति में खेल का महत्वपूर्ण स्थान थाI बाद के दिनों में राजा बहादुर के पुत्र राजकुमार शुभेश्वर सिंह अपने रामबाग स्थित क़िला के खेल प्रांगण में मैच कराते थे I वे स्वयं बिल्यर्ड्ज़ , स्क्वॉश , टेनिस , क्रिकेट , वोलीवॉल के उच्च्कोटि के खिलाड़ी थे I
राजकुमार शुभेश्वर सिंह अपने रामबाग स्थित क़िला के खेल प्रांगण में गेंदबाजी करते हुए
दरभंगा में क्रिकेट की शुरुआत राजकुमार शुभेश्वर सिंह के समय हीं हुआ । ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के क्रिकेट टीम के प्रथम कैप्टन कुमार शुभेश्वर सिंह के हीं टीम के खिलाड़ी थे और उनकी टीम के कई खिलाडियों ने विश्वविद्यालय टीम का प्रतिनिधित्व किया। अब ये सब अतीत हो गया है I धीरे - धीरे खेल के मैदान वीरान हो गये और मैदान का उपयोग जनसभा , प्रदर्शनी में होने लगा ।
महाराजा कुमार विश्वेश्वर सिंह फ़ुटबॉल शील्ड: यह फुटबॉल डर्बी में प्रसिद्ध टूर्नामेंट थी Iकारमाइकल कप में दरभंगा की विजेता टीम [(बाएं से दाएं) राजा बहादुर विश्वेश्वर सिंह, जी . पी . डैन्बी , कैप्टन माल सिंह , महाराज कामेश्वर सिंह पोलो टूर्नामेंट में दरभंगा टीम I
WRITTEN BY
रमन दत्त झा